यह एक कड़ी चेतावनी है, जिसे गंभीरता से लेने के अलावा और कोई चारा हीं नहीं है । यूनेस्को की एक रिपोर्ट के मुताबिक २०५० तक भारत में भारी जल संकट आने वाला है । अनुमान है कि तीस सालों में देश के जल संसाधनों में ४० फीसदी की कमी आएगी । देश की बढ़ती आबादी को ध्यान में रखे तो प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता कड़ी तेजी से घटेगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर भारत में स्थिति पहले से ही बेहद खराब है । अब देश के और हिस्से भी इस संकट की चपेट में आ जाएंगे । विश्व जल दिवस के मौके पर देश-दुनिया में पानी को लेकर कई जरूरी बातें हुई, कई तथ्य सामने आए । सचाई यह है कि भारत में हालात इतने खराब हैं कि युद्धस्तरीय प्रयास के बिना कुछ हो ही नहीं सकता । जल संकट से निपटने को लेकर हमारे यहां जुबानी जमा खर्च ज्यादा होता है, ठोस प्रयास कम ही देखे जा रहे हैं । भारत में प्रति व्यक्ति के हिसाब से सालाना पानी की उपलब्धता तेजी से नीचे जा रही है । २००१ में यह १,८२० घन मीटर था, जो २०११ में १,५४५ घन मीटर ही रह गया । २०२५ में इसके घटकर १,३४१ घन मीटर और २०५० तक १,१४० घन मीटर हो जाने की आशंका जताई गई है । आज भी करीब ७.५ करोड़ हिंदुस्तानी शुद्ध पेयजल से वंचित है ।
हर साल देश के कोई १.४ लाख बच्चे गंदे पानी से होने वाली बीमारियों से भर जाते है । इस संकट की बड़ी वजह है भूमिगत जल का लगातार दोहन, जिसमें भारत दुनिया में अव्वल है । पानी की ८० फीसद से ज्यादा जरूरत हम भूजल से पूरी करते हैं, लेकिन इसे दोबारा भरने की बात नहीं सोचते ।
भारत में ताल-तलैयों के जरिए जल संचय की पुरानी परंपरा रही है । बारिश का पानी बचाने के कई तरीके लोगों ने विकसित किए थे । दक्षिण में मंदिरों के पास तालाब बनवाने का रिवाज था ।
पश्चिमी भारत में इसके लिए बावडियों की और पूरब में आहर-पईन की व्यवस्था थी । लेकिन समय बीतने के साथ ऐसे प्रयास कमजोर पड़ते गए । बावडियों की कोई देखरेख नहीं होती और तालाबों पर कब्जे हो गे हैं ।
संकट का दूसरा पहलू यह है कि भूमिगत जल लगातार प्रदूषित होता जा रहा है । औद्योगिक इलाकों में धुलनशील कचरा जमीन में डाल दिया जाता है ।