सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को गुजरात हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें गोधरा दंगों के बाद साल २००२ के दौरान क्षतिग्रस्त हुए धार्मिक स्थलों के पुननिर्माण और मरम्मत के लिए राज्य सरकार को पैसों का भुगतान करने के लिये कहा गया था । चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस पीसी पंत की बेंच ने यह फैसला सुनाते हुए गुजरात सरकार को राहत दी । राज्य सरकार की तरफ से पेश अतिरिक्त सलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी दलील में कहा कि संविधान के अनुच्छेद २७ के तहत कर दाता को अधिकार दिया गया हैं कि उससे किसी धर्म को प्रोत्साहन देने के लिए टैक्स नहीं लिया जा सकता । ऐसे में धर्मस्थलों के निर्माण के लिए सरकारी खजाने से पैसा देना गलत होगा । उन्होंने आगे कहा कि गुजरात सरकार ने आधिकारिक तौर पर यह नीति बनाई हुई है कि वह धर्मस्थलों को हुए नुकसान की भरपाई हुई है कि वह धर्मस्थलों को हुए नुकसान की भरपाई नहीं करेगी । राज्य सरकार ने २००१ के भूकंप में क्षतिग्रस्त हुए धर्मस्थलों के लिए भी कोई मुआवजा नहीं दिया था । हाईकोर्ट में मामले की याचिकाकर्ता रही संस्था इस्लामिक रिलीफ सेंटर के वकील ने इस दलील का विरोध करते हुए कहा कि धर्मस्थलों की सुरक्षा राज्य सरकार की जिम्मेदारी हैं । सरकार की गैरजिम्मेदारी से हुए नुकसान की उसे भरपाई करनी चाहिए । लेकिन अदालत इस दलील से सहमत नहीं हुई । बाद में अतिरिक्त सलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि हमारी याचिका को मंजूर कर लिया गया हैं और इसके अतिरिक्त राज्य सरकार ने अदालत से यह भी कहा कि राज्य सरकार दंगों के दौरान क्षतिग्रस्त हुए विभिन्न धार्मिक थांचों, दुकानों और घरों की मरम्मत और फिर से निर्माण कार्य के लिये अनुग्रह राशि का भुगतान करने की इच्छुक हैं । मेहता ने कहा कि सरकार की इस योजना को स्वीकार कर लिया गया हैं । अदालत हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ गुजरात सरकार की ओर से दायर याचिका की सुनवाई कर रही थी । हाईकोर्ट ने अपने आदेश में राज्य सरकार को साल २००२ के गुजरात दंगों मंे क्षतिग्रस्त हुए करीब ५०० से अधिक धार्मिक स्थलों को मुआवजे की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया था । जस्टिस दिपक मिश्रा और पीसी पंत की बेंच ने गुजरात सरकार द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट से सवाल किया था कि एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में पूजा करने की जगह के दोबारा निर्माण के लिए मुआवजा राशि देना क्या उचित हैं ।