दवाओं की कीमतों को काबू में करने के लिए चार साल पुराने ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीओ) में प्रस्तावित बदलाव के जरिए नॉन शेड्यूल्ड ड्रग्स को प्राइस कंट्रोल के तहत लाया जा सकता हैं । कीमत तय करने के तरीके में बदलाव के जरिए ऐसा किया जा सकता हैं । दवा कंपनियों का कहना है कि अगर ऐसा कर दिया गया तो इंडस्ट्री की ग्रोथ को चोट पहुंचेगी और बाजार में प्रतिस्पर्धा के माहौल को नुकसान होगा । जो दवाएं कीमत नियंत्रण प्रणाली के दायरे से बाहर होती हैं । उन्हे नोन शेड्यूल्ड ड्रग्स कहा जाता हैं । अभी प्राइस कंट्रोल के तहत लगभग ३७० दवाएं हैं । नैशनल फार्मासूटिकल डिपार्टमेन्ट के प्रतिनिधियों ने जो प्रस्ताव बनाया हैं । उसमें नॉन शेड्यूल्ड ड्रग्स को प्राइस कंट्रोल में लाने के अलावा आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची में कीमत तय करने की मौजूदा प्रणाली को बदलने का सुझाव दिया गया हैं । सुझाव में कहा गया है कि सभी ब्रैड्स और जेनरिक दवाओं के साधारण औसत को ध्यान में रखते हुए एक पर्सेट से ज्यादा बाजार हिस्सेदारी वाले ब्रैड्स का साधारण औसत लिया जाए । भारतीय दवा कंपनियों की प्रतिनिधि संस्था इंडियन फार्मासूटिकल अलायंस ने कहा कि यह संसोधन इंडस्ट्री को नुकसान पहुंचाएगा । उसने कहा कि मौजूदा प्राइस कंट्रोल पॉलिसी के अशर का आकलन किए बिना बदलावों पर चर्चा की गई । आईपीे के महासचिव डीजी शाह ने कहा कि डीपीसीओ २०१३ को अभी चलने देना चाहिए । चार साल में ही बदलाव करना जल्दबाजी होगी ।अफोर्डेबिलिटी और एक्सेस सुनिश्चित करने में इसने योगदान देना शुरु कर दिया हैं । शाह ने कहा कि टोटल मार्केट के मुताबले आवश्यक दवाओं की लिस्ट वाले प्रोडक्ट्स की तेज ग्रोथ से भी दवाओं का ठीक से उपयोग होने का संकेत मिल रहा हैं ।