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लड़की को ‘कॉल गर्ल’ कहना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं : सुप्रीम

एक लड़के के माता-पिता ने उसकी गर्लफ्रेंड को ‘कॉल गर्ल’ कह दिया तो लड़की ने आत्महत्या कर ली । लड़के और उसके माता-पिता पर लड़की को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में केस दर्ज हो गया । १५ साल बाद जब सुप्रीम कोर्ट से फैसला आया तो परिवार को राहत मिली । सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कॉल गर्ल कहने मात्र से आरोपियों को आत्महत्या का जिम्मेदार ठहराकर दंडित नहीं किया जा सकता है । जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी ने अपने फैसले में कहा कि आत्महत्या का कारण अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल था, यह नहीं माना जा सकता है । जजों ने कहा कि गुस्से में कहे गए एक शब्द को, जिसके परिणाम के बारे में कुछ सोचा-समझा नहीं गया हो, उकसावा नहीं माना जा सकता है । सर्वोच्च अदालत ने इसी तरह के एक पुराने फैसले में एक व्यक्ति को अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप से मुक्त कर दिया था । उसने झगड़े के वक्त पत्नी से जाकर मर जाने को कहा था । सुप्रीम कोर्ट ने ताजा मामले में इसी पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा, ‘इसी फैसले के मुताबिक हमारा विचार है कि इस तरह का आरोप आईपीसी की धारा ३०६/३४ के तहत दोष मढ़कर कार्यवाही की प्रक्रिया आगे बढ़ाने के लिहाज से पर्याप्त नहीं है । इस आरोप से यह भी स्पष्ट है कि आरोपियों में से किसी ने भी पीड़िता को आत्महत्या के लिए न तो उकसाया, न बहलाया-फुसलाया और न उस पर दबाव बनाया । मामले में कोलकाता की लड़की आरोपी से अंग्रेजी भाषा का ट्यूइशन लेती थी । इस दौरान दोनों एक-दूसरे के करीब आ गए और विवाह करने का फैसला किया । लेकिन, लड़की जब लड़के के घर गई तो लड़के के गुस्साए माता-पिता ने उसे खूब खरी-खोटी सुनाई और कॉल गर्ल तक कह दिया । लड़की के पिता की ओर से दर्ज शिकायत के मुताबिक लड़की इसलिए दुखी थी क्योंकि उसके बॉयफ्रेंड ने अपने माता-पिता के व्यवहार और उनके शब्द पर ऐतराज नहीं जताया । इसी पीड़ा में लड़की ने जान दे दी । मामला वर्ष २००४ का है । लड़की ने अपने दो सुइसाइड नोट में कहा कि उसे कॉल गर्ल कहकर गाली दी गई और जिससे वह प्यार करती थी, उसने ऐसी बात पर भी प्रतिक्रिया नहीं दी । पुलिस ने जांच के बाद लड़के और उसके माता-पिता के खिलाफ आरोप पत्र (चार्जशीट) दाखिल किया । तीनों आरोपियों ने ट्रायल कोर्ट में इसका विरोध किया, लेकिन उनकी याचिका खारिज हो गई ।

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