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भारत-भूटान प्रेमालाप

भारत के पड़ौसी देशों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सबसे पहले भूटान जाना हुआ। क्यों हुआ ? यह किसी संकट की वजह से नहीं हुआ बल्कि इसलिए हुआ कि भूटान भारत का बहुत ही अनूठा पड़ौसी है। भूटान भारत का एक मात्र पड़ौसी है, जिसके चीन से कूटनीतिक संबंध नहीं हैं। भारत के सभी पड़ौसी यों तो अपने आप को प्राचीन या बृहत्तर भारत का अंग मानते हैं लेकिन वे चीन से दोस्ती गांठने और भारत को छकाने में सबसे आगे रहते हैं। क्या नेपाल, क्या श्रीलंका, क्या मालदीव और पाकिस्तान के तो कहने ही क्या ? चीन के नेता माओत्से तुंग भूटान और सिक्किम को चीन की हथेली की उंगलियां बताया करते थे लेकिन भूटान एक मात्र ऐसा भारत का पड़ौसी है, जिसमें चीन की दाल नहीं गल पाती। पिछले दिनों भूटान के दोकलाम क्षेत्र में चीन ने कब्जा करने की कोशिश की तो भारत ने अपनी फौजें अड़ा कर भूटान की संप्रभुता की रक्षा की। हालांकि भूटान के साथ हुई 1949 की संधि का अवसान हो चुका है लेकिन भूटान की सुरक्षा और विदेश नीति का भार भारत के कंधों पर ही है। भूटान ने लगभग हर वक्त पर संयुक्तराष्ट्र संघ में भारत का साथ दिया है। भूटान जाकर मोदी ने भारत के संबंधों को पहले से भी अधिक घनिष्ट बना दिया है। भूटान नरेश और भूटान के प्रधानमंत्री ने भारतीय प्रधानमंत्री के स्वागत में पलक-पांवड़े बिछा दिए। मोदी ने 10 समझौतों पर हस्ताक्षर किए। उनमें शिक्षा, शोध, सौर-ऊर्जा, बिजली-उत्पादन, सूचना-तकनीक, अंतरिक्ष स्टेशन जैसे मामलों को रखा गया है। भूटान का बिजली-उत्पादन में अप्रतिम योगदान है। इस समय यह छोटा-सा देश 2000 मेगावाट से भी ज्यादा बिजली पैदा कर रहा है। भारत ने भी भूटान को 700 टन मासिक से बढ़ाकर गैस की आपूर्ति 1000 टन प्रति मास कर दी है। दोनों देशों के नागरिकों को अब रुपे कार्ड की भी प्रचुर सुविधा मिलेगी। भूटान का उसकी पंचवर्षीय योजनाओं में भी भरपूर भारतीय सहयोग मिलता है। लगभग 8 लाख नागरिकों वाले इस सुरम्य राष्ट्र में अपराध लगभग नहीं के बराबर होते हैं। इस देश में पर्यावरण की शुद्धता यूरोपीय राष्ट्रों से भी ज्यादा है। वर्तमान भूटान नरेश के पिता के हम सपरिवार थिम्पू में मेहमान रह चुके हैं। दक्षिण एशिया के युवा नेताओं में उनके-जैसा पढ़ा-लिखा और जिज्ञासु राष्ट्रपति प्रधानमंत्री या नरेश मैंने कोई दूसरा नहीं देखा। 

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