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यूक्रेन : रूसी सेना ने नष्ट कर दिए अपने स्वयं के उपकरण, जानिए क्या है सच?

(नताशा लिंडस्टेड, प्रोफेसर, गवर्नमेंटी विभाग, एसेक्स यूनिवर्सिटी) लंदन| (द कन्वरसेशन) हाल के दिनों में ऐसी समाचारें इनकमी हैं कि यूक्रेन में आगे बढ़ने से रोक दी गयी और कई सैन्य असफलियों का सामना कर रही रूसी सेना ने अपने स्वयं के उपकरण नष्ट कर दिए हैं, उसने युद्ध लड़ने और आदेशों का पालन करने से मना कर दिया है और एक समाचार में यहां तक कहा गया है कि उन्होंने अपने ही कमांडर पर हमला कर दिया.

उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) का अनुमान है कि दो महीने से भी कम समय में इस संघर्ष के दौरान करीब 15,000 रूसी सैनिक मारे गए है, जो अफगानिस्तान में नौ सालों में मारे गए सोवियत संघ (अब विघटित हो चुके) के सैनिकों के बराबर है. ऐसा बताया जा रहा है कि सैनिकों का मनोबल गिर गया है.

ऐसी स्थिति में रूसी सैनिकों के विद्रोह करने की संभावना है. लड़ाई छोड़कर भागने से सेना का शारीरिक और मनोवैज्ञानिक उत्साह घट जाएगा, जबकि पाला बदलने या शत्रु की सेना में शामिल होने से यूक्रेन को सहायता मिल सकती है. यह पहली बार नहीं है जब रूसी या सोवियत सैनिकों ने किसी संघर्ष में आदेशों को मानने से मना कर दिया है.

रूस-जापान युद्ध के दौरान रूसी सैनिकों ने जून 1905 में विद्रोह कर दिया था जो इतिहास की मशहूर घटनाओं में से एक है. सुशिमा की लड़ाई में रूसी नौसेना का अधिकतर बेड़ा नष्ट हो गया था और उसके पास कुछ गैर-अनुभव वाले लड़ाके बचे थे. बांसा मांस परोसे जाने समेत कार्य करने की गड़बड़ स्थितियों का सामना कर रहे 700 नाविकों ने अपने अधिकारियों के विरूद्ध ही विद्रोह कर दिया था.

द्वितीय विश्वयुद्ध में जोसेफ स्टालिन ने सेरेण्डर करने की ओर एकदम बर्दाश्त न करने वाली नीति लागू करते हुए सैनिकों के बीच आदेशकारिता सुनिश्चित करने की प्रयास की थी. चेचन्या के साथ रूस के पहले संघर्ष (1994-96) में बड़ी संख्या में सैनिक जंग का मैदान छोड़कर भाग गए थे. यूक्रेन में सैनिक इतनी बड़ी संख्या में क्यों भाग रहे हैं?

युद्ध में पाला बदलना और मैदान छोड़कर भागना आम है. युद्ध की कठिनाईें, लड़ाई में गड़बड़ प्रदर्शन और युद्ध की वजह की वैचारिक प्रतिबद्धता के कम होने से सैनिक जंग का मैदान छोड़कर भाग सकते हैं.

लेकिन रूसी सैनिक पहले ही मनोबल गिरने और योगदान न मिलने की स्थिति को महसूस कर रहे हैं. शोध से पता चलता है कि सैनिकों का मनोबल कम है, खासतौर से जिन्हें आधुनिक तकनीक नहीं आती हैं. ऐसी समाचारें हैं कि रूसी सेना अपनी संरचना में परिवर्तन लाने की प्रयास कर रही है लेकिन इसके बावजूद रूस की अपनी सेना ने 2014 में बताया कि उसके 25 फीसदी से अधिक कर्मी अपनी इंफेंट्री के उपकरण नहीं चला पाए. हालांकि, राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के परिवर्तनों के नतीजन सेना का बजट बढ़ गया लेकिन सैनिकों की तनख्वाह नहीं बढ़ी.

अनुबंधित सैनिकों को उनके अमेरिकी समकक्षों के मुकाबले 200 फीसदी कम वेतन दिया जाता है. इन सभी कारणों से सैनिकों का मनोबल गिरा है और पाला बदलने तथा मैदान छोड़कर भागने की आशंका भी बढ़ी है. इससे निपटने के लिए रूसी जनरल अग्रिम मोर्चे पर जाकर लड़ रहे हैं ताकि सैनिकों को प्रोत्साभलाई किया जाए.

इसके कारण कम से कम सात जनरल की मृत्यु हो गयी है, जो द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से रूसी सेना में जनरलों की सबसे अधिक मृत्यु रेट है. रूस न सिर्फ यूक्रेन के लोगों के दिल और दिमाग जीतने में असफल रहा है, बल्कि अब वह अपने सैनिकों का मन जीतने के लिए संघर्ष करता प्रतीत हो रहा है

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