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मोदी पर विश्वास बढ़ाती खबरें

भारत में भ्रष्टाचार और न्याय का संकट बड़ा मसला है। गत दिवस समाचार की सुर्खियों में रही दो खबरें निश्चित तौर पर इन दोनों मामलों में दूसरी बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बनी सरकार के प्रति जनता का विश्वास बढ़ाने वाली है। बशर्त मोदी सरकार इसे एक अभियान के रूप में जारी रखें तो निश्चित तौर पर यह कहना गलत नही होगा कि मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। भले ही कठुवा मामले में मासूम को 17 माह बाद इंसाफ मिला हो लेकिन इस फैसले से न्यायालय और सरकार के प्रति जनता का विश्वास बढ़ा। जम्मू कश्मीर के कठुआ में आठ साल की मासूम के देश को हिला देने वाली सामूहिक दुष्कर्म की घटना में विशेष अदालत ने सरकार की मजबूत पैरोकारी के चलते पुजारी सांझीराम, प्रवेश कुमार, दीपक को उम्रकैद और एक एक लाख का जुर्माना तथा पुलिस उपनिरीक्षक आनंद दत्ता, हेड कांस्टेबल तिलक राज तथा एपीओ सुरेन्द्र वर्मा को पाॅच पाॅच साल की सजा सुनाई। इसके बाद दूसरी खबर यह कि ंवित्त मंत्रालय ने भ्रष्टाचार के आरोप में लिप्त 12 वरिष्ठ अफसरों को अनिवार्य तौर पर रिटायर कर दिया है। इन अफसरों में आयकर विभाग के चीफ कमिश्नर के साथ-साथ प्रिंसिपल कमिश्नर जैसे पदों पर तैनात रहे अधिकारी भी शामिल हैं। सूत्रों के मुताबिक, अधिकारियों को नियम 56 जे के तहत रिटायर किया गया है। इनमें 1985 बैच के आईआरएस अशोक अग्रवाल का नाम सबसे ऊपर है। आयकर विभाग में ज्वाइंट कमिश्नर रैंक के अफसर अग्रवाल ईडी के संयुक्त निदेशक रहे हैं और भ्रष्टाचार के आरोप में 1999 से 2014 के बीच निलंबित रहे हैं। इन पर कारोबारियों से वसूलीव तांत्रिक चंद्रास्वामी की मदद का आरोप रहा है। 1985 बैच के आईआरएस अधिकारी होमी राजवंश को सेवानिवृत्ति दी गई है। उन पर पद का गलत इस्तेमाल करते हुए संपत्ति अर्जित करने का केस चला और सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार किया। तभी से वो निलंबित हैं।नोएडा के कमिश्नर (अपील) रहे 1989 बैच के आईआरएस एसके श्रीवास्तव को भी सेवानिवृत्त किया गया है। इन पर कमिश्नर रैंक की दो महिला आईआरएस के साथ यौन शोषण करने का आरोप है। अन्य अफसरों में बी बी राजेंद्र प्रसाद, बी अरुलप्पा, अशोक मित्रा, चंदर सैनी भारती,अंदासु र्रंवदर, श्वेताभ सुमन, विवेक बत्रा व राम कुमार भार्गव शामिल हैं। सभी महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत थे जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप रहे हैं। 
वैसे देखने में उक्त दोनों सामान्य सी खबर ही है। सरकार ने राजस्व विभाग के 12 वरिष्ठ अधिकारियों को भ्रष्टाचार और यौन उत्पीड़न के आरोपों में बाहर का रास्ता दिखा दिया है। बेशक, यह जरूरी कदम है, और सराहनीय भी। इन अधिकारियों के खिलाफ लगे आरोपों के विस्तार में जाएं, तो पता चलता है कि ये सारे मामले न सिर्फ गंभीर हैं, बल्कि पूरी व्यवस्था सारी जानकारी और मामलों की गंभीरता को समझते हुए भी लगातार चल रही थी। मसलन, इन 12 अधिकारियों में शामिल एक आयकर आयुक्त का मामला ही लें। उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के आरोप सही पाए गए थे और इन आरोपों के कारण उन्हें दस साल पहले ही निलंबित कर दिया गया था। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार कानून के तहत मामला दर्ज कराया गया, जो अभी तक चल रहा है। यह अकेला मामला ही बता देता है कि भ्रष्टाचार रोकने की हमारी व्यवस्था में कितने छिद्र हैं। जब किसी कर्मचारी को निलंबित करके उसके खिलाफ मामला चलाया जाता है, तो उसे इस निलंबन के दौरान उसके वेतन का एक हिस्सा दिया जाता है और इसके अलावा उसे सेवा से संबंधित अन्य सुविधाएं भी पहले की ही तरह मिलती रहती हैं। यह व्यवस्था तब तक रहती है, जब तक कि इस मामले में कोई अंतिम फैसला न हो जाए। जाहिर है कि इस मामले में यह अंतिम फैसला पिछले दस साल से अटका हुआ था। कहावत है कि देर से हुआ न्याय, दरअसल न्याय न मिलना ही होता है, यानी ऐसे मामलों में फैसले का लंबे समय तक लटके रहना, उस जनता के साथ अन्याय ही है, भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन जिसका अधिकार है। हालांकि भ्रष्टाचार के खिलाफ इस कार्रवाई को बहुत बड़ी कार्रवाई नही कहा जा सकता लेकिन इस शुरूआत को एक मजबूत शुरूआत कहा जा सकता है। इसका मुख्य कारण यह कि यह वही विभाग है जिसे देश में भ्रष्टाचार रोकने का महत्वपूर्ण सरकारी हाथियार माना जाता है। सरकार ने जिन अधिकारियों को सेवा मुक्त किया गया है, उनमें एक ऐसे अधिकारी भी हैं, जिन पर एक कारोबारी से दबाव डालकर धन उगाहने का आरोप है। एक ऐसे अधिकारी भी हैं, जिन्होंने अपने और अपने परिवारी जनों के नाम पर सवा तीन करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति जमा कर रखी थी, जबकि उनकी आमदनी के सारे स्रोतों से इतनी संपत्ति बनाना मुमकिन नहीं था। वैसे इन 12 में से ज्यादातर के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले ही हैं। इसके अलावा, इसी फेहरिस्त में एक ऐसे अधिकारी भी हैं, जिन पर अपने ही विभाग की दो महिला अधिकारियों के यौन उत्पीड़न का मामला चल रहा है। जिन महिला अधिकारियों का उत्पीड़न हुआ, वे आयुक्त स्तर की अधिकारी थीं। यह बताता है कि महिलाएं भले ही वरिष्ठ अधिकारी हो जाएं, पर वे सुरक्षित नहीं हैं, साथ ही यह भी कि कार्यस्थलों पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए अभी बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। पद के दुरूपयोग के चलते यौन उत्पीड़न की कुछ घटनाएं तो इस कारण सामने नही आती कि ऊची पहुंच के चलते दोषी पर कार्रवाई नही होती। लेकिन यौन उत्पीडन मामले में सरकार की इस कार्रवाई से कई और मामले सामने आएगे और इस तरी की घटनाएं रूकेगी। 
ये मामले राजस्व विभाग के हैं, लेकिन ये स्थितियां पूरे सरकारी तंत्र में ही हैं। ये मामले बता रहे हैं कि प्रशासन को भ्रष्टाचार और यौन उत्पीड़न से मुक्त बनाने का काम कितना जटिल है। ऐसे मामलों को निपटाने में कई बरस लगते हैं और न तो समय रहते सजा मिल पाती है और न सजा बाकी लोगों के लिए सबक बन पाती है। भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए सबसे जरूरी यह है कि मामलों का निपटारा जल्दी हो और भ्रष्टाचारियों के लिए सजा की पक्की व्यवस्था बने। अधिकारियों को सेवामुक्त किया जाना स्वागत योग्य है, पर प्रशासन से भ्रष्टाचार मिटरने के लिए इससे आगे बढ़कर बहुत कुछ करने की जरूरत है। अब प्रश्न यह उठता है कि न्यायालय में हाल में ही देश में हुई खौफ पैदा करने वाली अलीगढ़ के टप्पल में ढाई साल की मासूम की हत्या, इसी माह की आठ जून को हमीर पुर में दुष्कर्म के बाद मासूम की हत्या, इसी दिन भोपाल में आठ वर्षीय बच्चे के साथ दुष्कर्म के बाद हत्या सहित कई समाज को शर्मसार करने वाली घटनाओं के दोषियों को सजा दिलाने में सरकार कितनी जल्दी करती है। रहा भ्रष्टाचार पर शिकंजा कसने की बाॅत है उसके लिए सबसे पहले केन्द्र और राज्य सरकारों को साझाा अभियान चलाना होगा। क्योकि हर राज्य में दर्जनों की संख्या में भ्रष्टाचार में लिप्त और आय से अधिक सम्पत्तियों के अफसरों की जानकारी है। कई के मामले लम्बे अरसे से लम्बित है। एक अनुमान के मुताबिक अगर वाकई सुचिता के साथ राज्य एवं केन्द्र सरकार प्रयास करेगी तो एक माह के अभियान में देश में सौ से अधिक ऐसे अफसर सामने आएगें जो कुबेर की श्रेणी में है।

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