भारत की सब से बडी अदालत के सन्मामनीय प्रधान न्यायाधीश जस्टीस रंजन गोगोई ने शांघाइ कोआपरेशन कार्पोरेशन परिषद में सब्द चुराये बिना कहा की बढती हुइ लोकचाहना और ऐसे लोकप्रिय फोर्सिस न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के लिये एक चुनौतीपूर्ण है। उन्होंने न्यापालिका को ऐसे बतोंसे बचाने की भी बात कही है। वौसे तो जस्टीस सन्मानीय गोगोईजी ने यह बात ग्लोबल स्तर को देखते बुये कही लेकिन कुछ इसे इस नजरिये से भी देख रहे है की क्या ये भारत के संदर्भ में भी कहा गया है….? क्योंकी हाल ही में केन्द्र के कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने जजों की नियुक्ति को लेकर ये कहा की कानून मंत्रालय कोइ पोस्ट आफिस नहीं की कोलेजियम द्वारा जजो के नाम भेजे जाय और मंत्रालय उस पर ठप्पा लगा दे…! मंत्रालय यानि सरकार का भी इसमें हित होता है ये मानना है मंत्रीमहोदय का. जस्टीस गोगोईजी का मानना है की जजों का चयन और नियुक्तिया गैर राजनितिक तौर पर होनी चाहिये। जज कीसी दलिय विचारधारा से जूडा होना नहीं चाहिये। जजों की नियुक्तियां और कोलेजियम को लेकर एनडीए सरकार और सुप्रिम कोर्ट के बीच काल्ड वोर जैसा चल रहा है।
कुछ बातें कीसी को कहने के लिये ऐसे मंच से कही जाती है की उसे समझना आसान नहीं होता। मसलन जस्टीस गोगोईजी के मंतव्य को ही लिजिये। उन्हों ने अपनी बात रखी अंतरराष्ट्रीय मंच पर लेकिन उसका संदर्भ जूड रहा है भारत की चुनी हुइ सरकार या दल से। उन्हों ने सही कहा की कीसी एक या दल या बल को इतनी लोकचाहना नहीं मिलनी चाहिये की वह फिर न्यायपालिका के लिये भी चेलेन्ज न बन जाये….! जैसे की राम मंदिर का मामला। केन्द्र में खुद की सरकार आइ है मानकर कुछ सगठन ने राम मंदिर विवादी केस को लेकर सुप्रिम कोर्ट और कुछ जजों की भारी आलोचना की थी। राम मंदिर मुद्दा अदालत का है ही नही और ये कोर्ट का काम नहीं है…..ऐसा भी कहा गया क्योंकी केन्द्र में अपनी सरकार है….! और अब तो इतनी सीटें मिली है की यदि कीसी नें आपा खो दिया तो….?
लोकतंत्र को बचाने के आखिर आसार या आशा न्यायपालिका और प्रेस-मिडिया है। हाल में भारत की मुख्य धारा वाली मिडिया क्या कर रही है ये तो अखबार या टीवी चैनल देखें तो तुरन्त ही पत्ता चल जाता है। रही बात न्यायपालिका की तो वही लोकतंत्र को बचानेवाला अंतिम हथियार है। यदि न्यायपालिका को भी भारी और प्रचंड बहुमत से जीती कोइ भी दल की सरकार दबाने की कोशिश करेंगी तो फिर लोकतंत्र को कौन बचायेंगा।…? इमरजन्सी में न्यायपालिका की क्या हालत थी ये कीसी दल को कहने की जरूरत नहीं। लेकिन यही दल जब ऐसा ही दुर्व्यवहार करें या करने की कोशिश करें तो लोकतंत्र को कोई नहीं बचा सकता। कानून मंत्री पेशे से वकील है त क्या वे कोलेजियम से भी उपर है….? या सरकार सब से बडी अदालत से भी उपर है क्या…? यही सरकार को जजों की नियुक्तियों में क्या हित हो सकता है….? सुप्रिम कोर्ट का कोलेजियम जो नाम भेज रहा है उसके बारे में कोलेजियम से ज्यादा ओर कोइ नहीं जान सकता। लेकिन नहीं….नाम तो हम ही तय करेंगे…ऐसी मानसिक्ता तब आती है जब उसे हद से ज्यादा सीटें मिल जाय…! यह एक खतरनाक मोड है। मतदाता या लोगो को सोचना होगा सीजेआइ के अवलोकन के बाद की कीसी को इतना न चाहों की वह आपकी सुने ही नहीं या लोकतंत्र में नियंत्रण से बाहर हो जाय….! न्यायपालिका को अपना काम करने देना चाहिये. उसे चुनी हुई सरकार पर आश्रित न बनाया जाय। वर्ना लोकतंत्र की अंतिम आश भी चकनाचूर हो जायेंगी।…फिर बाकी बचेंगा क्या….? इसीलिये हे मेरेदेशवासीयों, कीसी को भी इतनी सीटें न दो या इतना न चाहो की फिर वह अपनी मन मर्जियां करें और जनता भिन्न भिन्न लाइनों में खडीं नजर आये…..!