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5 सरकारी बैंकों में सरकार घटाएगी अपनी हिस्सेदारी

देश के 5 पब्लिक सेक्टर्स बैंकों में सरकार अपनी हिस्सेदारी कम कर सकती है. फाइनेंस सर्विस सेक्रेटरी विवेक जोशी के मुताबिक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, IOB और UCO बैंक समेत पांच पब्लिक सेक्टर के बैंक SEBI के मिनिमम पब्लिक शेयर होल्डिंग यानी एमपीएस नियमों के तहत सरकार अपनी हिस्सेदारी को 75 फीसदी घटा सकती है. बता दें, सेबी के नियमों का पालन करने के लिए सरकारी हिस्सेदारी को 75 फीसदी से कम करने की योजना सरकार बना रही है. सेबी के इन नियमों का पालनसार्वजनिक क्षेत्र के कुल 12 बैंकों (पीएसबी) में से चार 31 मार्च, 2023 तक कर चुके हैं.

फाइनेंस सर्विस सेक्रेटरी ने कहा कि 12 पब्लिक सेक्टर के बैंकों (PSB) में से चार 31 मार्च 2023 तक एमपीएस मानदंड़ों का अनुपालन कर रहे थे. वहीं मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान 3 और पब्लिक बैंकों ने मिनिमम 25 प्रतिशत पब्लिक फ्लोट का अनुपालन किया है. बाकी पांच बैंकों ने MPS की आवश्यकता को पूरा करने के लिए सरकारी हिस्सेदारी को कम करने की योजना बना रहे हैं. जल्द ही इन बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी कम हो सकती है.

किसके पास कितनी हिस्सेदारी?

फिलहाल दिल्ली स्थित पंजाब एंड सिंध बैंक में सरकार की हिस्सेदारी 98.25 प्रतिशत है. चेन्नई के इंडियन ओवरसीज बैंक में सरकार की हिस्सेदारी 96.38 प्रतिशत, यूको बैंक में 95.39 प्रतिशत, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में 93.08 प्रतिशत, बैंक ऑफ महाराष्ट्र में 86.46 प्रतिशत है. सेबी के अनुसार, सभी सूचीबद्ध कंपनियों के लिए सार्वजनिक शेयरधारिता नियमों का अनुपालन जरूरी है.

कब तक का है समय?

हालांकि, नियामक ने सरकारी बैंकों को विशेष छूट दी है. उनके पास 25 प्रतिशत सार्वजनिक शेयरधारिता के नियम को पूरा करने के लिए अगस्त, 2024 तक का समय है. जोशी ने कहा कि बैंकों के पास हिस्सेदारी कम करने के लिए कई विकल्प हैं, जिनमें अनुवर्ती सार्वजनिक निर्गम (एफपीओ) या पात्र संस्थागत नियोजन शामिल हैं.

उन्होंने कहा कि बाजार की स्थिति के आधार पर इनमें से प्रत्येक बैंक शेयरधारकों के सर्वोत्तम हित में निर्णय लेगा. बिना कोई समयसीमा बताए उन्होंने कहा कि इस अनिवार्यता को पूरा करने के प्रयास जारी हैं.

जोशी ने कहा कि वित्त मंत्रालय ने सभी पीएसबी को अपने स्वर्ण ऋण पोर्टफोलियो की समीक्षा करने का निर्देश दिया है क्योंकि सरकार के समक्ष नियामकीय मानदंडों का अनुपालन न करने के मामले आए हैं.वित्तीय सेवा विभाग (डीएफएस) ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के प्रमुखों को पत्र लिखकर उनसे स्वर्ण ऋण से संबंधित अपनी प्रणाली और प्रक्रियाओं पर गौर करने को कहा है.

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