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शिक्षा

गांवों में रिकॉर्ड 98% से ज्यादा बच्चे स्कूल जा रहे

देश के ग्रामीण इलाकों में शिक्षा की नई तस्वीर सामने आई है। गांवों में अब 98.4% बच्चे स्कूल जा रहे हैं। पहली बार यह आंकड़ा 98% से ऊपर है, 2018 में यह आंकड़ा 97.2% रहा था। उधर, 2022 में सरकारी और निजी स्कूलों में 5वीं कक्षा के 42.8% स्टूडेंट्स ही कक्षा-2 की किताबें पढ़ने में समर्थ रहे, 2018 में यह आंकड़ा 50.5% था। यही नहीं साल 2012 में ऐसे बच्चे 46.9% थे।

रिपोर्ट में पता चला है कि निजी स्कूलों में एडमिशन लेने वाले स्टूडेंट्स की संख्या घटी हैं। वहीं, सरकारी स्कूल में बच्चों का दाखिला बढ़ा है। 4 साल पहले यानी साल 2018 में 30.9% बच्चे निजी स्कूलों में थे, लेकिन 2022 में 25% पर सिमट गए। सरकारी स्कूलों में दाखिला लेने वाले 6-14 साल के बच्चे 72.9% हो गए, जो 2018 में 66% ही थे।

7-10 साल के 99% बच्चों ने लिया स्कूलों में एडमिशन
देश के स्कूलों में शिक्षकों की उपस्थिति भी सुधरी है। 2022 में टीचर्स की उपस्थिति 87% दर्ज की गई। साल 2018 में यह आंकड़ा 85.4% थी। वहीं, स्टूडेंट्स की उपस्थिति 72% बनी हुई है। 7 से 10 साल तक के सबसे ज्यादा 99% बच्चों ने स्कूलों में एडमिशन लिया। वहीं, 11 से 14 साल की उम्र के 98% बच्चे स्कूलों में दाखिला लेकर दूसरे नंबर पर रहे।

2022 में 69% स्कूलों में प्लेग्राउंड बन गया। जबकि 2018 में 66.5% स्कूलों में ही प्लेग्राउंड था। सर्वे में पता चला है कि 50% बच्चों की माएं और 80% बच्चों के पिता ने 5वीं कक्षा से ज्यादा तक पढ़ाई की है।

देश में लड़कों की अपेक्षा लड़कियां ज्यादा काबिल हैं। 8वीं की 71.3% लड़कियां कक्षा 2 की किताबें पढ़ सकती हैं, ऐसे लड़के 67.6% ही हैं। 2018 में सरकारी-निजी स्कूलों के 5वीं में पढ़ने वाले 50.5% बच्चे कक्षा-2 की किताबें पढ़ सकते थे, जो 2022 में 42.8% रह गए। यह आंकड़ा 2012 के 46.9% से भी काफी कम है।

8वीं के 23% बच्चे ही घटाना जानते हैं। 26% बच्चे ही 11 से 99 के बीच के नंबर पहचान पाए। तीसरी कक्षा के 9.8% बच्चे ही 1 से 9 तक के अंक पहचान पाते हैं। 36.8% ही ऐसे हैं, जो 11 से 99 तक के अंक पहचान पाए।

पंजाब में 8वीं के 44.5% बच्चे डिवीजन करने में सक्षम हैं। हरियाणा में ऐसे 49.5% हैं, जबकि केरल में 39.9% बच्चे ही डिवीजन कर पाते हैं। राजस्थान में 5वीं के सिर्फ 6.3% बच्चे डिवीजन कर पाते हैं और सिर्फ 4.9% को ही घटाना आता है, जो देश में सबसे बुरी स्थिति है। मणिपुर में सबसे ज्यादा 45.2% बच्चे डिवीजन कर लेते हैं, जो देश में सबसे अच्छी स्थिति है।

मध्यप्रदेश में कक्षा 3 के 9.5%, झारखंड-छत्तीसगढ़ में 16%, गुजरात में 23%, बिहार में 21% और पंजाब में 31% बच्चे ही घटाना जानते हैं। 56% के साथ मणिपुर के बच्चे यहां भी टॉप पर हैं।

देश में कक्षा एक से 8वीं तक के 30.5% बच्चे निजी ट्यूशन लेते हैं, 2018 में यह आंकड़ा 26.4% था। यूपी, बिहार और झारखंड में 2018 के मुकाबले 2022 में निजी ट्यूशन लेने वाले बच्चे 8% तक बढ़ गए हैं। एक वजह यह भी है कि कोरोना के बाद गांवों में ट्यूशन पढ़ाकर खर्च चलाने वाले युवा तेजी से बढ़े हैं। गुजरात में निजी ट्यूशन पढ़ने वाले 2018 से करीब 5% तक घट गए हैं।

यहां कोरोना महामारी के चलते पढ़ाई की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ा है। यही वजह है कि निजी और सरकारी स्कूलों के करीब 31% बच्चे निजी ट्यूशन पर निर्भर हैं। बिहार में ऐसे बच्चे 71.5% और पश्चिम बंगाल में 74% हैं, जो देश में सर्वाधिक है। वहीं, राजस्थान में सबसे कम 4.6% बच्चे ट्यूशन के भरोसे हैं। अनुएल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट 2022 में ये आंकड़े सामने आए हैं। 616 जिलों के 19,060 गांवों में 7 लाख बच्चों पर किए गए सर्वे में ये नतीजे सामने आए हैं।

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