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चुनावी कैंपेन ने पकड़ी डिजिटल रफ्तार, प्रचार सामग्री का बाजार हुआ मंदा

लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व लोकसभा चुनाव की शुरुआत हो चुकी है. सात चरणों में होने वाले चुनाव का पहला चरण हो पूरा हो गया लेकिन प्रचार सामग्री की मांग बेहद सुस्त रही. दिल्ली के सदर मार्केट के व्यापारी काफी निराश हैं. कई तो अब अपना ये कारोबार भी बंद करने वाले हैं. इस बार लोकसभा चुनाव सात चरणों में होंगे. चुनाव प्रचार सामग्री जैसे, पार्टियों के झंडे, स्टीकर, टीशर्ट इत्यादि की मांग मार्केट में काफी धीमी है. पूर्वी दिल्ली के सदर बाजार में जहां के कारोबारियों का कहना है कि अब तक तो इन सामग्रियों की मांग काफी कम है.

हालांकि उनका ये भी कहना है कि जैसे-जैसे आगे चरणों के चुनाव होंगे शायद इनकी मांग बढ़े. जेन एंटरप्राइजेज़ के मोहम्मद इमरान ने बताया कि इस कारोबार में उनका परिवार लगभग 5 दशकों से है, लेकिन ऐसी स्थिति कभी नहीं देखी कि दुकान में इतना सन्नाटा छाया है.

पार्टियों का बजट कम

मोहम्मद इमरान जिनका लगभग 50 साल से यही काम है, उन्होंने बताया कि कई पार्टियों का बजट कम है, इसलिए इस बार कोई इन सामान को लेने नहीं आ रहा है. पहले आम आदमी पार्टी से काफ़ी ऑर्डर आते थे, लेकिन क्योंकि अब उनके संयोजक कम है, तो छोटे कार्यकर्ता पैसे नहीं खर्च करना चाहते हैं. वहीं गुलज़ारी लाल ने बताया कि कांग्रेस दावा करती है कि हमारा खाता फ्रीज़ है और बजट कम है, इसीलिए उनकी तरफ़ से भी बिज़नेस ठंडा पड़ा है. सिर्फ़ बीजेपी की तरफ से मांग है.

किराया निकालना मुश्किल

मोहम्मद इमरान ने बताया कि उनके यहां 8 लोगों का स्टाफ है, जिन्हें 15000 से लेकर 25000 तक की सैलरी देनी होती है. इसके अलावा दुकान का किराया दो लाख है, मंदी के समय ये सब निकालना बेहद मुश्किल हो रहा है. बिजली, खाना पीना सब मिलाकर 3 लाख रुपए महीने का खर्च है, इसीलिए अब दुकान बंद करके घर से काम करेंगे.

डिजिटल प्रचार ने किया फीका

जीवी ट्रेडर्स की हरमीत कौर ने बताया कि वो पिछले तीन दशकों से इस कारोबार में हैं लेकिन ऐसा मंदी वाला समय नहीं देखा. उन्होंने बताया कि उनकी शॉप में पार्टी के स्लोगन लिखे हुए टी-शर्ट, पार्टी के झंडे, स्टीकर, और टोपियां हैं. लेकिन चुनाव जबसे हाईटेक हुए हैं, ज़्यादातर पार्टियां डिजिटल कैंपेन करती हैं, पहले सब घर-घर जाते थे, और जनता को कुछ बांटते भी थे लेकिन अब ये सब की डिमांड एकदम ख़त्म है. पहले अच्छा रिस्पांस होता था, बैठने और बात करने तक का समय नहीं होता था लेकिन अब स्थिति बदल गई है.

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