केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने दावा किया कि लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर आगे आने वाली पार्टियों का एजेंडा अपने परिवारों को बचाना है लेकिन वे बिहार और अन्य राज्यों में होने वाले चुनावों में धूल चाटेंगे।
केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री ने 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के 48 साल पूरे होने पर आयोजित एक निंदा कार्यक्रम में बोलते हुए यह बात कहीं। रविवार को मुंबई में भारतीय जनता पार्टी द्वारा निंदा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। उन्होंने आरोप लगाया कि ये परिवार-केंद्रित पार्टियां लोगों की मदद करने के बजाय पहले अपने परिवारों की रक्षा करना चाहती हैं। केंद्रीय मंत्री ने शुक्रवार को पटना में हुई कांग्रेस समेत विपक्षी दलों की बैठक का भी जिक्र किया।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जो लोग लोकतंत्र के खिलाफ साजिश रच रहे हैं और पहले अपने परिवारों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें न केवल विभिन्न राज्यों में हार का सामना करना होगा, बल्कि बिहार में भी उनका सफाया हो जाएगा। उन्होंने दावा किया कि ये पार्टियां लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर आगे आई हैं लेकिन हकीकत में उन्होंने लोकतंत्र की कीमत पर अपने परिवारों को बचाने के लिए हाथ मिला लिया है। उन्होंने कहा, लोग ऐसे दोहरे मानदंड वाले दलों का साथ नहीं देंगे। महाराष्ट्र की राजनीति का जिक्र करते हुए यादव ने कहा कि लोगों में आम धारणा है कि (2019) चुनाव के बाद उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने भाजपा को धोखा दिया है।
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के संरक्षण के हरसंभव प्रयास कर रही सरकार
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री ने रविवार को कहा कि सरकार लुप्तप्राय पक्षी ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (जीआईबी) के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है और इस दिशा में हरसंभव प्रयास कर रही है। उन्होंने राजस्थान में स्थापित दो प्रजनन केंद्रों के जरिये जल्द ही इसकी आबादी बढ़ने की उम्मीद भी जताई।
केंद्रीय मंत्री उन रिपोर्टों पर प्रतिक्रिया दे रहे थे, जिसमें बताया गया है कि गुजरात में केवल चार मादा ग्रेट इंडियन बस्टर्ड ही बची हैं। उन्होंने बताया कि जीआईबी की आबादी खासकर अवैध शिकार के कारण घटी है। इसके अलावा इन पक्षियों को एक विशेष आहार की भी जरूरत होती है। वन्यजीव विशेषज्ञों के मुताबिक, जीआईबी राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में पाए जाते हैं। लेकिन राजस्थान को छोड़ अन्य राज्यों में इनकी संख्या घटकर महज चार से पांच रह गई है। राजस्थान में भी इस लुप्तप्राय प्रजाति के संरक्षण के ठोस प्रयासों के अभाव में पिछले 20 वर्षों में इनकी संख्या 250 से घटकर 50 या 60 रह गई है।