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वरुण गांधी का सियासी भविष्य मुश्किल मं ः रिपोर्ट

भारतीय जनता पार्टी ने आगामी लोकसभा चुनावों के लिए रविवार को अपने 111 उम्मीदवारों की नई सूची जारी की। इस लिस्ट में पीलीभीत से वरुण गांधी का टिकट काटकर उनकी जगह पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद को उतारा गया है। हालांकि पार्टी ने सुल्तानपुर से वरुण की मां मेनका गांधी पर एक बार फिर भरोसा जताया है। वरुण गांधी पिछले कुछ सालों से पार्टी के खिलाफ ही बयानबाजी कर रहे थे जिसके बाद उनका टिकट कटना तय माना जा रहा था। रविवार को आई बीजेपी की लिस्ट ने टिकट कटने के कयासों पर मुहर भी लगा दी।

कभी बीजेपी के उभरते सितारे थे वरुण गांधी

बहुत ज्यादा वक्त नहीं बीता जब वरुण गांधी को बीजेपी का उभरता सितारा माना जाता था, और लोग उनमें उनके पिता संजय गांधी का अक्स देखते थे। यहां तक कि 2017 यूपी विधानसभा चुनावों में बीजेपी की शानदार जीत के बाद उनका नाम संभावित मुख्यमंत्री के तौर पर भी उछाला गया था, लेकिन योगी आदित्यनाथ इस मामले में सबसे बीस साबित हुए। इससे पहले 2013 में उन्हें बीजेपी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया था और पश्चिम बंगाल का प्रभार भी सौंपा गया, लेकिन संगठन के कामों में उनकी कोई खास रुचि नहीं दिखी। 2014 में उन्हें सुल्तानपुर से लोकसभा का टिकट मिला और उन्होंने जीत भी दर्ज की,लेकिन जल्द ही उनका रुख पार्टी के विपरीत नजर आने लगा था।

जब पोस्टरों और सोशल मीडिया में छाए थे वरुण

2016 में प्रयागराज में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से पहले पूरे शहर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की तस्वीरों के साथ वरुण गांधी के बड़े-बड़े पोस्टर चर्चा का विषय बन गए थे। इसके अलावा सोशल मीडिया पर भी ऐसे कैंपेन चलाए जा रहे थे जिनमें वरुण गांधी को उत्तर प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री के तौर पर देखा जा रहा था। बीजेपी जैसी पार्टी में, जहां संगठन के फैसले पर ज्यादा जोर दिया जाता है, इस तरह की चीजों ने हलचल पैदा कर दी। वरुण गांधी भी उस समय अपने बयानों की वजह से लगातार खबरों में बने हुए थे और कई बार उनके बयान पार्टी के खिलाफ जाते नजर आ रहे थे।

वरुण गांधी के खिलाफ गए उनके ही बयान!

धीरे-धीरे ऐसा भी वक्त आया जब बीजेपी के नेता वरुण गांधी अपनी पार्टी पर विरोधियों से भी ज्यादा करारे प्रहार करते नजर आए। कोरोना वायरस महामारी के मैनेजमेंट को लेकर वरुण गांधी ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार पर सवाल उठाए थे। इसके बाद 2020 में केंद्र के 3 कृषि कानूनों पर भी वरुण गांधी अपनी ही पार्टी के खिलाफ नजर आए थे। बाद में उन कानूनों को सरकार ने वापस ले लिया था। इसके बाद वरुण रोजगार और स्वास्थ्य के मुद्दों पर लगातार अपनी ही सरकार को घेरते रहे। सितंबर 2023 में अमेठी के संजय गांधी अस्पताल का लाइसेंस सस्पेंड होने के बाद वरुण ने इसे ‘एक नाम के खिलाफ नाराजगी’ करार दिया था।

वरुण के सियासी भविष्य को लेकर अटकलें

अब वरुण गांधी के सियासी भविष्य को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं। कभी-कभी उनके कांग्रेस या समाजवादी पार्टी के साथ जाने की चर्चा भी चली है, लेकिन अभी तक ये बातें सिर्फ कयास ही साबित हुई हैं। तमाम सियासी पंडित भी अभी यह बताने की हालत में नहीं लगते कि आखिर वरुण गांधी का आगे का रुख क्या होगा। फिलहाल इतना तो तय है कि वरुण गांधी इस बार बीजेपी के टिकट पर लोकसभा चुनावों में ताल नहीं ठोकने वाले।

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