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हर साल 2400 करोड़ टन उपजाऊ मिट्टी हो रही नष्ट

कृषि और खाद्य उत्पादन के साथ ही मिट्टी जैवविविधता को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह सबसे अधिक प्रजाति समृद्ध क्षेत्र है, जो पृथ्वी पर मौजूद 59 फीसदी प्रजातियों को आसरा देती है। यह आंकड़ा 2006 में वैज्ञानिकों द्वारा जारी अनुमान से दोगुना है। नए अध्ययन से पता चला है कि मृदा, पृथ्वी पर सबसे अधिक प्रजाति-समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र है, लेकिन इसका 33 फीसदी हिस्सा संकट में है।

स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट फॉर फॉरेस्ट, स्नो एंड लैंडस्केप के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक दल ने वैश्विक स्तर पर मिट्टी में मौजूद जैवविविधता का पहला विस्तृत अध्ययन किया है। इसमें ज्यूरिख विश्वविद्यालय और एग्रोस्कोप कृषि अनुसंधान स्टेशन से जुड़े वैज्ञानिक भी शामिल थे। अध्ययन के नतीजे जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पनास) में प्रकाशित हुए हैं। रिसर्च में यह भी सामने आया है कि मृदा करीब 90 फीसदी कवक (फंगी) प्रजातियों का घर है। इसके अलावा यह पौधों की 86 फीसदी और बैक्टीरिया की 44% से ज्यादा प्रजातियों का आसरा है। वहीं केंचुए और घोंघे जैसे मोलस्क प्रजातियों का 20 फीसदी हिस्सा अपने जीवन के लिए मृदा के ही सहारे है।

हर साल 2,400 करोड़ टन उपजाऊ मिट्टी हो रही नष्ट
शोधकर्ता मार्क एंथोनी का कहना है कि किसी ने भी अभी तक मृदा में एक कोशिकीय जैसे बहुत छोटे जीवों की विविधता का अनुमान लगाने का प्रयास नहीं किया है। फिर भी वे मिट्टी में पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण, कार्बन भंडारण के लिए महत्वपूर्ण हैं। अनुमान लगाए तो एक चम्मच स्वस्थ मिट्टी में 100 करोड़ तक बैक्टीरिया और एक किलोमीटर से अधिक कवक हो सकते हैं। औसतन एक पौधे को 18 में से 15 पोषक तत्व मृदा से प्राप्त होते हैं। ऐसे में उनकी गुणवत्ता का अच्छा होना बहुत मायने रखता है।  हम अपने 95 फीसदी भोजन के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मृदा पर ही निर्भर हैं। बावजूद हम मिट्टी को गंभीरता से नहीं लेते। उसका 33 फीसदी से ज्यादा हिस्सा खराब होने की कगार पर है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी ग्लोबल लैंड आउटलुक के अनुसार अकेले कृषि उत्पादन के कारण हर साल 2,400 करोड़ टन उपजाऊ मिट्टी नष्ट हो जाती है।

अगले 27 साल में 90% मृदा की घटेगी गुणवत्ता
संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी ‘ग्लोबल एसेस्समेंट ऑफ सॉइल पोल्युशन : समरी फॉर पॉलिसी मेकर्स’ नामक रिपोर्ट के हवाले से पता चला है कि मिट्टी पर बढ़ते दबाव के लिए अनियंत्रित तरीके से बढ़ रही औद्योगिक गतिविधियां, कृषि, उर्वरकों का अंधाधुंध प्रयोग, खनन और शहरी प्रदूषण मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) ने आगाह किया है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो अगले 27 वर्षों में 90 फीसदी मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट आ जाएगी।

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