दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को एसबीआई से कहा कि वह अनिल अंबानी की कंपनियों- आरकॉम, रिलायंस टेलीकॉम और रिलायंस इंफ्राटेल के खातों पर यथास्थिति बनाए रखे, जिन्हें बैंकों ने धोखाधड़ी वाले खातों के रूप में घोषित किया है। न्यायमूर्ति प्रतीक जालान ने तीन कंपनियों के तत्कालीन निदेशकों की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह फैसला दिया। याचिका में बैंकों द्वारा किसी खाते को धोखाधड़ी वाला घोषित करने के संबंध में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के 2016 के परिपत्र को चुनौती दी गई थी। याचिका के अनुसार परिपत्र ने बैंकों को खाताधारक को कोई पूर्व सूचना या जानकारी दिए बिना खातों को धोखाधड़ी के रूप में घोषित करने की अनुमति दी है, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
उनके वकीलों ने अदालत को बताया कि इस परिपत्र के खिलाफ 2019 के बाद से ऐसी ही कई याचिकाएं दायर की गई हैं और उन मामलों में याचिकाकर्ताओं को उच्च न्यायालय ने राहत दी। इसके बाद न्यायमूर्ति जालान ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को निर्देश दिया कि वह तीन कंपनियों के खातों के संबंध में ‘सुनवाई की अगली तारीख तक यथास्थिति बनाए रखें।’ अदालत ने कहा कि आरबीआई और तीन कंपनियों सहित प्रतिवादी 11 जनवरी तक अपना जवाब दाखिल कर सकते हैं और मामले की अगली सुनवाई 13 जनवरी को होगी।
अनिल अंबानी के नेतृत्व वाले रिलायंस समूह की प्रमुख कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशंस ने 2019 की शुरुआत में दिवालियापन के लिए आवेदन किया था। रिलायंस कम्युनिकेशंस ने 2019 अपने को दिवालिया घोषित किए जाने का आवेदन किया था। भारतीय स्टेट बैंक ने कंपनी के कर्ज के समाधान की एक योजना प्रस्तुत की थी जिसमें ऋणदाताओं को अपने बकाए की 23,000 करोड़ रुपए की राशि की वसूली होने का अनुमान था। यह राशि उनके कुल बकाए की करीब आधी है। जानकारी के अनुसार, अगस्त 2016 को एसबीआई ने रिलायंस कम्युनिकेशंस और रिलायंस टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को क्रेडिट सुविधा के तहत 565 करोड़ और 635 करोड़ रुपए के दो लोन दिए थे और सितंबर 2016 में अनिल अंबानी ने इस क्रेडिट सुविधा के लिए पर्सनल गारंटी दी थी।
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