केंद्र सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमणियन ने कहा है कि कंपनियां संकट के समय हमेशा सरकार के सामने वित्तीय पैकेज का रोना न रोएं। जना स्माल फाइनेंस बैंक द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने राहत पैकेज के उद्योग जगत पर प्रभाव पर संदेह प्रकट किया है। सुब्रमणियन का कहना है कि उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होना सीखना चाहिए और ‘पापा बचाओ’ की मानसिकता को बदलने की जरूरत है। उनका यह बयान ऐसे वक्त में आया है, जब विभिन्न क्षेत्रों में मंदी के बीच उद्योग जगत सरकार से राहत पैकेज की आस लगाए बैठा है। सुब्रमणियन का मानना है कि सरकार से प्रोत्साहन पैकेज की मांग उचित नहीं है।
एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा, वर्ष 1991 से हम बाजार आधारित अर्थव्यवस्था बने हुए हैं और ऐसी अर्थव्यवस्था में सेक्टर तेजी से विकसित होते हैं और फिर सुस्ती के दौर से गुजरते हैं। भारत में प्राइवेट सेक्टर 1991 में बच्चा था। अब यह करीब 30 साल का वयस्क बन चुका है। अब तो उसे यह कहना शुरू करना चाहिए कि मैं अपने पैरों पर खड़ा हो सकता हूं और मदद के लिए मुझे पापा के पास जाने की जरूरत नहीं है।
उन्होंने कहा, यदि हम सरकार से उम्मीद करते हैं कि सुस्ती के दौर में सरकार हर बार दखल देकर करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल करें, तो मुझे लगता है कि राहत पैकेज से संभावित तौर पर नैतिक खतरा पैदा करेंगे। इसके साथ ही मुनाफा निजी हाथों और नुकसान सरकार का जैसी स्थिति बाजार आधारित अर्थव्यवस्था के लिए अभिशाप साबित होगी।कुछ ऐसी ही राय व्यक्त करते हुए बिजली सचिव सुभाष चंद्र गर्ग ने कहा कि राहत पैकेज देने की बजाय ब्याज दरों में कटौती और निजी क्षेत्र को कर्ज की उपलब्धता निजी क्षेत्र के लिए अच्छे टूल्स हैं। पिछले महीने तक वित्त सचिव रहे गर्ग ने कहा कि पहली तिमाही के आर्थिक वृद्धि के आंकड़े बीते साल समान अवधि के आंकड़ों से कम रहने का अनुमान है, जिसकी मुख्य वजह लोकसभा चुनाव के दौरान आर्थिक गतिविधियों में सुस्ती रहेगी।
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