सूरत के हजीरा में तैयार की गई के-9 वज्र तोप अब लद्दाख की सीमा पर गरजेगी। दरअसल, तीन तोपों को लद्दाख में ऊंचाई वाले पहाड़ी इलाकों में तैनात किया गया है। ये तोपें बुधवार को ही लेह पहुंचीं थीं। खबरों के मुताबिक, इन तोपों को एक अधिक ऊंचाई वाले बेस (सैन्य अड्डा) पर ले जाया जा रहा है। यहां जांच की जाएगी कि क्या इन तोपों का इस्तेमाल ऊंचे इलाकों में दुश्मन के खिलाफ किया जा सकता है।
सरकार के उच्च पदस्थ सूत्राें ने बताया कि सेना इन तोपों के प्रदर्शन के आधार पर दो-तीन अतिरिक्त रेजीमेंट के लिए इनकी खरीद का ऑर्डर दे सकती है। बोफोर्स घोटाले के बाद भारतीय सेना ने 1986 से कोई नई भारी तोपें अपने शस्त्रागार में शामिल नहीं की हैं। हालांकि अब सेना के-9 वज्र, धनुष और एम-777 अल्ट्रा-लाइट तोपों को अपने बेड़े में शामिल कर रही है।
सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने सूरत के हजीरा में लार्सन एंड टुब्रो के कारखाने में तैयार की गई 100वीं के-9 वज्र तोप को हरी झंडी दिखाई। जनरल नरवणे खुद इनसे संबंधित सभी गतिविधियों की निगरानी कर रहे हैं। के-9 वज्र तोप दक्षिण काेरिया की ‘के-9 थंडर’ तोप का स्वदेशी संस्करण है। इन स्वचालित ताेपाें की मारक क्षमता 38 किमी तक है। इसे दक्षिण कोरियाई फर्म के साथ साझेदारी में बनाया गया है।
के-9 वज्र-टी एक स्वचलित तोप है। 50 टन वजनी इस तोप की मारक क्षमता 38 किमी तक है। यह किसी भी दिशा में वार कर सकती है। यह पहली ऐसी तोप है जिसे भारतीय प्राइवेट सेक्टर ने बनाया है। यह तोप जीरो रेडियस में घूम सकती है यानी इसे घूमने के लिए जगह नहीं चाहिए। यह विस्फोट मोड में 30 सेकंड में तीन राउंड गोलाबारी कर सकती है जबकि इंटेंस मोड में तीन मिनट में 15 राउंड गोलाबारी करने में सक्षम है।
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