कुछ विधायक निजी कारणों से एक राजनीतिक दल से इस्तीफा देकर दूसरी पार्टी में शामिल हो जाते हैं। इसलिए चुनाव आयोग को फिर से चुनाव कराना पड़ता है।जिसकी वजह से प्रजा के टेक्स से जमा हुए पैसा का इस्तेमाल होता है। दल-बदल करने वाले विधायकों से चुनाव खर्च की वसूली के लिए चुनाल आयोग कोई नियम बनाए इसलिए गुजरात हाईकोर्ट में एक पीआईएल दाखिल की गई है। किसी भी सीट पर चुनाव कराने के लिए 1 से 2 करोड़ रुपया का खर्च आता है।
याचिकाकर्ता अधिवक्ता खेमराज कोष्ठी द्वारा गुजरात उच्च न्यायालय में दायर अपने पीआईएल में कहा कि है कि अयोग्यता से बचने के लिए विधायक किसी अन्य राजनीतिक दल में शामिल होकर उसी सीट से चुनाव लड़ते हैं। दल-बदलू नेताओं के निजी फायदे की वजह से लोगों के पैसे का नुकसान होता है। इसलिए कोई भी विधायक अपने कार्यकाल के अंत तक इस्तीफा नहीं दे पाए, चुनाव आयोग को ऐसा कानून बनाना चाहिए।गौरतलब हो कि 2017 के गुजरात विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी से जीते 77 विधायकों में से 15 विधायकों ने दल-बदल कर भाजपा का दामन थाम लिया है।
इसमें से 10 विधायक सत्तारूढ़ दल भाजपा से टिकट पाने के बाद फिर से चुनाव लड़ चुके हैं। अयोग्यता से बचने के लिए इस प्रकार की रणनीति अपनाया जाता है। दलबदलू नेताओं से उपचुनाव का खर्च वसूल किया जाए इसके लिए चुनाव आयोग कोई नियम बनाए इस मांग को लेकर गुजरात हाईकोर्ट में एक पीआईएल दाखिल की गई है। इस पीआईएल पर आज सुनवाई होने की उम्मीद जताई जा रही है।