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कोरोना काल में 60% अधिक खुले जनधन अकाउंट

कोरोना वायरस महामारी के कारण लगे लॉकडाउन से एक तरफ जहां सभी आर्थिक गतिविधियां बंद थी। वहीं, इस दौरान नए प्रधानमंत्री जन धन खाता की संख्या में काफी इजाफा हुआ। एसबीआई की इकोरैप रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना वायरस महामारी के दौरान इस साल 1 अप्रैल के बाद से करीब 3 करोड़ नए जन धन खाते खुले हैं और इनमें कुल 11,600 करोड़ रुपए जमा किए गए हैं यानी कोरोना वायरस महामारी के दौरान जनधन खाता खुलवाने के रेट में 60 फीसदी की तेजी आई। SBI की रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, 14 अक्टूबर तक देश में जनधन खातों की कुल संख्या 41.05 करोड़ तक पहुंच गई और इन बैंक अकाउंट्स में लगभग 1.31 लाख करोड़ रुपए डिपॉजिट हैं। SBI Ecowrap report में कहा गया है कि 3 करोड़ जनधन अकाउंट कोरोना महामारी के दौरान खुले हैं। 41 करोड़ से ज्यादा खुले अकाउंट हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इन खातों में औसत बैंक बैलेंस अप्रैल में 3400 रुपए था जो सितंबर में घटकर 3168 रुपए रह गया, लेकिन अक्टूबर में फिर इसमें मामूली बढ़ोतरी हुई और यह 3185 रुपए पर पहुंच गया।
महामारी की वजह से शुरूआत में लोग शहरों से गांव लौटे। ये लोग खर्च को लेकर ज्यादा सतर्क थे जिससे उनके बैंक अकाउंट में बचत के रूप में पैसे बढ़े। महामारी के दौरान बहुत से मजदूर शहरों से गांवों की ओर शिफ्ट हुए और इनकम घटने से उनमें बचत करने की प्रवृत्ति बढ़ी लेकिन जैसे ही लॉकडाउन खुला, वे वापस शहर लौटने लगे जिससे जनधन खातों का एवरेज बैंक बैलेंस कम हो गया।
इस साल सितंबर में लेबर रेमिटेंस (labour remittances) बढ़ा है यानी मजदूरों द्वारा घर से बाहर या किसी दूसरे शहर में रहकर वहां कमाए गए पैसों में से बचत करके घर भेजने की राशि बढ़ी है। विशे।5 के मुताबिक, कोरोना के कारण लेबर रेमिटेंस अप्रैल और मई में काफी कम रही। लेकिन जून के बाद यह बढ़ने लगी और सितंबर में लेबर रेमिटेंस कोरोना काल से पहले के स्तर पर पहुंच गया। अक्टूबर में इसके और बढ़ने की उम्मीद है। इसका मतलब यह है कि जो मजदूर शहरों से गांव की ओर लोटे थे, अब वे वापस शहर आने लगे हैं और उन्हें अब फिर से काम मिलने लगा है।
लेबर रेमिटेंस बढ़ने के साथ अप्रैल से अगस्त के दौरान लगभग 25 लाख नए ईपीएफओ सब्सक्राइबर्स बने। इनमें 12.4 लाख सब्सक्राइबर पहली बार पेरोल पर आए थे और पहली बार उनका पीएफ कटा था। यानी 12.4 लाख लोगों उनका पहली नौकरी मिली थी। हालांकि, चिंता की बात यह है कि डिग्री ऑफ फॉर्मलाइजेशन यानी इन्फॉर्मल सेक्टर से फॉर्मल सेक्टर में आने वाले एम्प्लॉई की संख्या वित्त वर्ष 2021 में 6 फीसदी तक गिर गई है जो पिछले कुछ वर्षों में औसतन 11 फीसदी थी। SBI की रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि सरकार को तीसरे राजकोषीय प्रोत्साहन के रूप में जनधन खातों में और अधिक पैसा डालना चाहिए।

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