यूपी विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की जमीन छीनने के बाद भाजपा एक बार फिर दलित वोटों में सेंध लगाने की तैयारी में हैं । यूपी में रहने वाले राम नाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना उत्तरी क्षेत्र में दलितों के बीच पैठ मजबूत करने की दिशा में भाजपा का बेहद नपा तुला कदम हैं । इसके अलावा पूरे देश में दलित समुदाय के बीच मजबूत मेसेज देने में भी पार्टी कामयाब होगी । कोविंद की उम्मीदवारी का ऐलान होने के बाद विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया राजनीतिक नजरिए से बेहद अहम हैं । जेडीयू चीफ नीतीश कुमार और बीएसपी सुप्रीमों और दलित नेता मायावती ने भाजपा के कदम का स्वागत किया । हालांकि दोनो ने समर्थन देने के मुद्दे पर तुरंत कुछ साफ करने से इनकार कर दिया । भले ही ये पार्टिया बाद में किसी दूसरे विकल्प पर मन बना लें । लेकिन पार्टियों की ओर से कैंडिडेट पर टिप्पणी करने को लेकर दिखाई गई शुरुआती सतर्कता उनकी बेचैनी को साफ तौर पर जाहिर करती हैं । यूपी के एक दलित चेहरे को कैंडिडेट बनाकर भाजपा ने काउं बेल्ट और मध्य भारत में मजबूत संदेश दिया हैं । इस क्षेत्र की लोकसभा चुनावों में अहम हिस्सेदारी हैं । भाजपा की देश की सत्ता पर पकड़ पहले से ही बेहद मजबूत हैं, ऐसे में एक दलित को देश के सर्वोच्च पद पर बिठाने से भाजपा को बड़ा राजनीतिक लाभ हो सकता हैं । कोविंद अनुसुचित जाति के कमजोर गैर जाटव तबके से आते हैं । भाजपा को एहसास है कि जाटव समुदाय का झुकाव बीएसपी जैसी गैर भाजपा पार्टी की ओर हैं । इसके अलावा आक्रामक आंबेडकवादी हिंदुत्व कार्ड की तरफ कम ही आकर्षित होते हैं । ऐसे में कोविंद के जरिए भाजपा गैर जाटवों में दखल बढ़ाने के लिए तैयार हैं ।