देश के सबसे वजनी रॉकेट जीएसएलवी एमके ३ के एतिहासिक लॉन्च के बाद इंडियन स्पेस रिसर्च ओर्गनाइजेशन (इसरो) एक ऐसा सेमी क्रायोदेनिक इंजन विकसित कर रहा हैं, जिसमें ईधन के तौर पर केरोसीन का इस्तेमाल किया जाएगा । अन्य पारंपारिक ईधनों के मुकाबले केरोसीन को इको-फ्रेंडली माना जाता हैं । कुछ रिपोट्र्स के मुताबिक अगर सब कुछ योजना के मुताबिक रहा तो इसरो इस सेमी -क्रायोजेनिक इंजन के इस्तेमाल का एक फायदा यह है कि यह रिफाइंड केरोसीन का इस्तेमाल करता हैं । जो लिक्विड फ्यूल के मुकाबले हल्का होता हैं । इसे सामान्य तापमान पर स्टोर करके रखा जा सकता हैं । वर्तमान में इस्तेमाल होने वाले लिक्विड ऑक्सीजन और लिक्विड हाईड्रोजन के मिश्रण का वजन केरोसीन से ज्यादा होता हैं और इसे शून्य से नीचे माइनस २५३ डिग्री तापमान पर स्टोर करके रखना पड़ता है । विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के डायरेक्टर डॉ के सिवन ने बताया कि ईधन के तौर पर पारंपारिक रुप से इस्तेमाल होने वाले लिक्विड हाईड्रोजन और ऑक्सीजन के मिश्रण के मुकाबले केरोसीन हल्का होता हैं । यह रोकेट लॉन्च के दौरान अपेक्षाकृत ज्यादा शक्तिशाली थ्रस्ट (धक्का) उत्पन्न करता हैं केरोसीन कम जगह लेता है और इस वजह से इंजन में ज्यादा फ्यूल डाला जा सकता हैं । इसके इस्तेमाल का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि रॉकेट के जरिए लॉन्च होने वाले पेलोड की क्षमता चार टन से बढ़ाकर ६ टन हो जाएगी । केरोसीन से चलने वाले इंजन से लैस रॉकेट के जरिए ज्यादा वजनी सैटेलाइट स्पेस मंे भेजे जा सकेंगे । दूसरे ग्रहों और सुदूर अंतरिक्ष के मिशनों में इनका इस्तेमाल किया जा सकेगा ।