कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और मजलिसे-इतेहादुल मुसलमीन के नेता असदुद्दीन औवेसी को बड़ी तकलीफ है कि संघ और भाजपा के नेता आजकल गांधीजी की माला क्यों जपते हैं ? औवेसी ने तो यहां तक कह दिया कि उनके दिल में गोडसे बैठा है और जुबान पर गांधी है। आजकल देश में जितने भी घोर आपत्तिजनक कार्य हो रहे हैं, उन सब को भाजपा और संघ के सिर पर थोपकर औवेसी का कहना है कि उन्हें गांधी का नाम लेने का कोई अधिकार नहीं है। लगभग यही बात सोनिया गांधी ने थोड़े शिष्ट लहजे में कह डाली है और उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाया है कि वह वोटों के खातिर गांधी के नाम को भुना रही है। सोनियाजी से कोई पूछे कि आज गांधी के नाम पर भारत में कौन वोट देता है ? यदि गांधी नाम से किसी को वोट मिलते रहे होंगे तो वे भी उनके परिवार को ही मिलते रहे होंगे। जबकि उनके परिवार का गांधी नाम से कुछ लेना-देना नहीं है। फिरोज गांधी से शादी करने के कारण इंदिराजी ने अपना उपनाम गांधी लिखना शुरु कर दिया। वास्तव में फिरोज अपने नाम की जो अंग्रेजी स्पेलिंग लिखते थे, उसका उच्चारण गांधी हो ही नहीं सकता। खैर, इसे जाने दें। असली सवाल यह है कि पिछले 40-50 साल में कांग्रेस ने गांधीजी की विरासत को जिंदा रखने के लिए क्या किया ? कुछ मूर्तियां लगा देने, डाक टिकिट छाप देने और जन्म तिथि और पुण्य-तिथि मनाने से क्या गांधी के प्रति अपना कर्तव्य पूरा हो जाता है ? कांग्रेसी सरकारें यही सब करती रही हैं। इतने लंबे राज्य-काल में कांग्रेस चाहती तो भारत में गांधी के सपनों का ऐसा ‘स्वराज’ खड़ा कर देती या वैसी कोशिश करती कि दुनिया को साम्यवाद और पूंजीवाद का कोई उपयोगी विकल्प मिल जाता। लेकिन उसने वोट और नोट की राजनीति करके अपना बेड़ा बिठा लिया। अब सोनिया और राहुल यदि गांधी का नाम भी लें तो हंसी आने के अलावा क्या होगा ? यदि वर्तमान सरकार, भाजपा और संघ गांधी का नाम आज ले रहे हैं तो उन्हें क्यों न लेने दें ? उनकी आंखें खुल रही हैं, दिल बड़ा हो रहा है, समझ गहरी हो रही है तो उसे वैसा क्यों न होने दें ? यह ठीक है कि इस सरकार को मोदी और शाह चला रहे हैं लेकिन हम यह न भूलें कि ये दोनों गुजराती हैं। वे गांधी और सरदार पटेल को कंधे पर उठा रहे हैं तो इसमें बुराई क्या है ? वे भी कांग्रेसियों की तरह सिर्फ गांधी को भुनाने में लगे रह सकते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत ने भी इस बार गांधी जयंति के अवसर पर दर्जनों अखबारों में अपने लेख छपवाए हैं। मैं उनसे और कांग्रेसी नेताओं से भी कहता हूं कि आज गांधी का हर बात में अंधानुकरण करने की जरुरत नहीं है लेकिन आज भी यदि वे गांधी-कार्य और विचार पर अमल करने की कोशिश करें तो वे भारत ही नहीं, सारी दुनिया को नया रास्ता दिखा सकते हैं।