प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रविवार को नौकरी के अवसरों एवं रोजगार को लेकर जुटाए गए आंकड़ों की समीक्षा करेंगे । दरअसल, यह पूरी जद्दोजहद जॉबलेस ग्रोथ (रोजगार विहीन विकास) के हवाले से हो रही सरकार की आलोचना का नीतिगत जवाब तैयार करने के लिए हो रही हैं । जॉबलेस ग्रोथ का लांछन पूर्व की यूपीए सरकार पर भी लगा था और अब मोदी सरकार एंप्लायमेन्ट एवेन्यू और डेटा जेनरेशन दोनों की पड़ताल करना चाहती हैं । इस मसले पर मीटिंग तब होने जा रही हैं जब टॉप के नीति निर्माताओं को लग रहा है कि नौकरी से जुड़े विश्वसनीय एवं समयबद्ध आंकड़ों का अभाव है जिस वजह से नौकरियों के अवसरों का आकलन करना मुश्किल हो जाता हैं । २०१४ के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने रोजगार का मुद्दा जोर शोर से उठाया था और अब सरकार अगले आम चुनाव से पहले इस मुद्दे के समाधान को लेकर प्रयासरत हैं । चिंता यह है कि असल समस्या क्या है, अगर यह पता नहीं चले और नौकरी के अवसर एवं रोजगार की स्थिति स्पष्ट नहीं हो तो यह मामला सत्ताधारी दल के लिए कमजोर कड़ी साबित हो जाएगा । संबंधित आधिकारिक आंकड़े कुछ कमियो की वजह से स्पष्ट नहीं हो पा रहे हैं । ये खामिया संबंधित सेक्टर्स, अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के आकलन और नौकरियों एवं स्वरोजगार को लेकर स्पष्ट अंतर को लेकर हैं । एक सरकारी सूत्र का कहना है कि नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया रोजगार के आंकड़ो पर प्रधानमंत्री मोदी के सामने प्रेजटेंशन देने जा रहे हैं । वह विश्वसनीय आंकड़ों पर आधारित रोजगार के अवसरों के आकलन के लिए सरकार की ओर से तैयार एक टास्कफोर्स का नेतृत्व कर रहे हैं ।