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युवाओं को ऊबर की तरह इस्तेमाल कर रहीं आईटी फर्मे

पुणे की परसिस्टेंट सिस्टम्स ने भर्तियो की पुरानी प्रथा को तोडते हुए अपनी टीम में कुछ फ्रीलांसरो और कसल्टंट्‌स को शामिल कर लिया जिन्होंने कम वक्त के एक प्रोजेक्ट पर काम किया । जोब की दुनिया में यह थोडा नया आइडिया है जो ग्लौबल टेक्नोलजी सर्विस इंडस्ट्री में धीरे धीरे जोर पकडता जा रहा है । इसे गिग इकोनमी या वर्कफोर्स का उबराइजेशन कहा जा रहा है, जहां लोग डिमांड सप्लाइ मोडल पर काम करते है । इससे डिमांड और इंट्रेस्ट एरियाज के लिहाज से विभिन्न प्रोजेक्ट्‌स के लिए एक से दुसरी कंपनी का भ्रमण करते रहते है । परसिस्टेंट सिस्टम्स के चीफ पीपल ओफिसर समीर बेंद्रे ने कहा, हालांकि यह सर्विसेज कंपनियो में बडे पैमाने पर अब तक नहीं दिखा है, लेकिन इसकी शरुआत हो चुकी है । उन्होंने कहा, कुछ पोकेट्‌स में हम इसका प्रयोग कर रहे है.. हमें लगता है कि कुछ क्षेत्रो में इसके इस्तेमाल के अच्छे अवसर है । मसलन, अगर महिलाए मातृत्व अवकाश के बाद कम पर लौट रही हो तो । इन्फोसिस और विप्रो समेत दुसरी भारतीय आईटी कंपनियां उबराइज्ड वर्कफोर्स के आइडिया पर विचार कर रही है । इस ट्रेंड के जोर पकडने के पीछे मार्केट में उठापटक और इंडियन आईटी सर्विसेज के सबसे बडे मार्केट अमेरिका में बदली राजनीतिक स्थिति में कही बडी वजह युवाओं की प्राथमिकताओं का बदलना है । इन्फोसिस में एचआर हेड रिचर्ड लोबो ने कहा, वर्कफोर्स में मिलेनियल्स के बढते दबदबे से वो सारी धारणाए टुट रही है जो किसी एंप्लोयी को कंपनी से जुडा और प्रेरित रखती थी । उन्होंने कहा, हम ज्यादा से ज्यादा मिलेजुले वर्कफोर्स के साथ डील कर रहे है जहां फुल टाइम और पार्ट टाइम एप्लोयी एक ही वजह पर काम करते है, लेकिन दोनो की जरुरते बिल्कुल भिन्न है । लोबो कहते है कि फुल टाइम जोब नहीं करने की चाहत रखनेवालो की तादाद बढती जा रही है । उन्होंने कहा, जिस तरह लोगो को ओन डिमांड कारों से आवाजाही की आदत हो गई है, उसी तरह एप्लोयर्स भी उन खास कामों के लिए लोगो की ओन डिमांड हायरिंग कर लेंगे जिन्हें रेग्युलर स्टाफ नही निपटा सकते ।

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