पूरे भारत में आज कल शिक्षा मंहगी होती दिख रही है। पर एसे में जो कोई अगर शिक्षा मुफ्त में देता है तो उससे बढा दान कोई नही हो सकता। कारण की शिक्षा बांटने से बढ़ती है। देश का कोई भी नागरिक हो वो अपने बच्चे को मंहगी से मंहगी स्कुल में पढ़ाना चाहेगा, लेकिन गरीब का क्या। आज एक शिक्षा बांटने से बढ़ती है, उसको सार्थक करने वाला एक उदाहरण गुजरात के अहमदाबाद शहेर से देखने को मिला। यहां पर 72 साल के कमल परमार पिछले 18 साल से गरीब छात्रों को मुफ्त में पढ़ाने का काम कर रहे हैं। बच्चों को पढ़ाने के लिए कमल परमार ने अपने घर के सामने ही रोड के पुटपाथ पर बेंच रखकर उसे स्कुल बनी दिया और वहां पर गरीब बच्चों को पढ़ाते है।
देश में प्रवाईवेट स्कुल खोलने में एक होड सी लगी हुई है। हर व्यक्ति अब अपना खुद का एक छोटा सा सक्ल बनाकर चलाना चाहता है लेकिन सरकार के द्वारा बनाई गई प्राथमिक के माध्यमिक स्कुलों में कोई पढ़ना ही नही चाहता। लेकिन जरुरी नही कि प्राईवेट स्कुल हो तभी गरीब के बच्चे पुढ सकते है। जिसका कोई नही उसका भगवान है, और भगवान बनकर सरस्वती का ज्ञान बांटने के लिए कमल परमार गरीब बच्चों को पढाने के साथ साथ उन्है एक वक्त का मुफ्त में खाना भी खिलाते है। कमल परमार का खुद का एक कारखाना है जो पहले वो चलाते थे, लेकिन अब उनका बेटा चलाता है।
शुरुआत में कमल परमार अकेले थे लेकिन धीरे-धीरे लोगों को उनके इस काम के बारे में पता चला और लोग उनकी मदद के लिए आगे आए। हमारे देश में कमल परमार जैसे लोग एक मिसाल हैं जो समाज की दिशा बदलने का काम कर रहे हैं। यहां पढ़ाई के लिए आनेवाले बच्चे काफी गरीब परिवार से आते हैं, जिनके माता-पिता मजदूरी कर अपना गुजारा करते हैं। उनके बच्चे स्कूल से छुट्टी हो जाने का बाद कमल परमार के इस फुटपाथ स्कूल में पढ़ने के लिए आते हैं, ये स्कूल शाम 6 बजे से 9 बजे तक चलता है, जहां बच्चों को रात का खाना भी खिलाया जाता है।
अहमदाबाद के कमल परमार अपनी मर्जी से ये स्कुल चलाते है कारण कि उन्है पता है कि बच्चे स्कुल में पढ़ने तो जाते है लेकिन उनको कुछ भी नही आता जिसके कारण वे परीक्षा में ना साप हो जाते है। और ये कारणसर वो गलत कदम उठा बैठते है। मेने यह स्कुल समाज के सभी बच्चों के लिए शुरु की इसमें कोई भी आकरअपने बच्चों को पढा सकता है।