भारत की राजनीति में प्याज का अलग ही महत्व हैं । प्याज के दाम, कई सरकारें गिरा और कई बना भी चुके हैं । १९९८ में प्याज के चढ़े दामों ने दिल्लीवालों के साथ दिल्ली की भाजपा सरकार की आंखों में भी आंसू ला दिए थे । दो दशक बार फिर प्याज चर्चा मंे हैं । इस बार प्याज के दाम मंे बड़ी गिरावट ने कई राज्यों में किसानों को आंदोलन करने पर मजबूर कर दिया हैं । विरोध की शुरुआत महाराष्ट्र के प्याज बेल्ट के एक गांव पुंतंबा से हुई । उस आंदोलन का कोई नेता नहीं था और ऐसी कोई रुपरेखा भी नहीं दिख रही थी कि आसपास की मंडियो से आगे इसका असर होगा । हालांकि ऐसा लग रहा है कि पुतंबा के किसानों की आवाज महाराष्ट्र के दूसरे इलाकों और मध्य प्रदेश के किसानों तक पहुंच गई और वे भी आंदोलन की राह पर चल पड़े । एग्रीकल्चर मार्केट्स के विशेषज्ञ डॉ गिरधर पाटिल ने कहा कि पुंतंबा गांव मंे हड़ताल की अपील ने किसानों को लंबे अरसे से जमा अपना गुस्सा बाहर निकालने का मौका दिया । २०१४-१५ में प्याज की रिकोर्ड उंची कीमतों ने इसे देश में किसानों की पसंदीदा फसल बना दिया । हालांकि बंपर फसल के अपने नुकसान भी हैं । फरवरी २०१६ से प्याज का दाम ३ रुपये से ७ रुपये प्रति किलो चल रहा था । मध्यप्रदेश में २००५-०६ से २०१५-१६ करे बीच प्याज उत्पादन छह गुना बढ़ गया । किसानों ने जोरदार रिटर्न की उम्मीद में जमकर खेती की थी । किसान कर्ज माफी की मांग कर रहे हैं । हालांकि किसानों, कृषि विशेषज्ञों और आंदोलन का समर्थन कर रहे अर्थशास्त्रियों को पता है कि समस्या कर्ज माफी से खत्म नहीं होगी । आंदोलनरत किसान व्यापार की बाधाएं हटाने और सरकारी प्रतिबंध खत्म करने की मांग कर रहे हैं । कीमतों में गिरावट का बड़ा कारण ज्यादा उत्पादन हैं लेेकिन सरकारी नीतियां भी कम जिम्मेदार नहीं हैं ।
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