पूरे देश में मानसुन धीरे धीरे सक्रिय हो रहा है। कहीं बाढ भी आइ है। आसाम और अरूणाचल में बाढ के आसार है। कहीं इतना ज्यादा बारिश नहीं हुवा, कहीं किसान आसामान की ओर ताक रहे है और काले मेघा…काले मेघा….पानी तो बरसाओ…की गुहार कर रहे है वरूण देवता से। बारिश का सीधा संबंध प्रकृति और पेड पौंधे तथा जंगल के साथ है। शायद इसीलिये युपी सरकार ने 15 अगस्त को एक ही दिन में 22 करोड पौधे रोपने का अनूठा कार्यक्रम जाहिर किया है। हो सकता है की यह विश्व विक्रम भी बन जाये। युपी सरकार ने इसे वृक्ष महाकुंभ का नाम दिया है। आज देश और दुनिया में पर्यावरण को बचाने की होड लगी है। ग्लेशियर पिघल रहा है। समंदर की सतह बढ रही है और आनेवाले समय में यह सतह इतनी बढेंगी की तटिय इलाके पानी में गर्क हो जायेंगे। भारत की तीनो ओर समंदर है। केन्द्र सरकार और प्रत्येक सरकारे यदि युपी सरकार की तरह वृक्ष महाकुंभ का आयोजन करे तो एक ही दिन में भारत की जितनी आबादी है उतने वृक्ष यानि की 135 करोड पौधे रोपे जाय तो ये एक सराहनिय के साथ आनेवाली पिढियो के लिये भी आशिर्वादरूप होगा।
मानसुन आता है और सरकारें पौधे लगाते है। बस, उसके बाद उस पौधे में से कितने बचे या कितने बडे होकर पेड बने उसकी कोइ चिंता नहीं करता। हर साल मानसुन या 5 जून को पर्यावरण दिन के अवसर पर पर्यावरण बचाने की शपथ ली जाती है लेकिन फिर….? केन्द्र सरकार और सभी राज्य सरकारे अलग अलग की बजाय सभ साथ मिल एक ही दिन में 100 करोड से ज्यादा पौधे लगाने का काम करे तो उसमें से 40-50 प्रतिशत भी बचे तो भी हरियाली में बढोती हो सकती है। युपी सरकार नें हर पौधे को जियो टैगिंग देने का निर्णय किया है। ताकि उस पौधे की जानकारी समय समय पर मिलती रहेंगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीजी भी प्राचीन संस्कृति और प्रकृति का अक्सर अपने संबोधन में जिक्र करते है। प्रकृति का दोहन नहीं लेकिन पोषण के वे हिमायती रहे है। इन्सान ने प्रकृति का हद से ज्यादा दोहन कर दिया है। जिसकी बदौलत प्राकृतिक आपदा आती रहती है।
एक ही दिन में 22 करोड पौधे लगे और एक ही दिन में 100 करोड से ज्यादा पौधे लगे तो भारत हरा…हरा…और हराभरा हो सकता है। र ये जरूरी भी है। सरकारे कुदरती आपदा के चलते उससे बचने और हुये नुकसान को भरपाई करने अबजो का खर्च करती आई है। 100 करोड से ज्यादा पौधे एक ही दिन में लगाने के लिये कितना खर्च होगा…? मोदी सरकार जल शक्ति पर दोर दे रही है। हर नल में जल चाहिये तो बारिश का पानी चाहिये। बारिश के पानी के लिये मानसुन अच्छा होना चाहिये और उसके लिये हरे भरे पेड-जंगल चाहिये जो मानसुन को खींच लाते है। तो साहिबान, देर किस बात की। चलो हम सब मिल कर एक पौधा जरूर लगाये और फिर यह गाने की जरूरत ही नहीं होगी की- काले मेघा….काले मेघा…पानी तो बरसा..!! क्योंकी पानी अपने आप आता रहेगा..! आता रहेगा….आता रहेगा….बस एक पौधा…प्रकृति तुझे सलाम…!
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