भाजपा ने बसपा-सपा गठबंधन को लेकर पहले ही कहा था कि यह अवसर परस्त चुनावी गठबंधन है। मायावती ने दलितों के नाम पर वोट लेकर दलितों को ही हाशिये पर रखा वो अपने परिवार के सिवा और किसी की कैसे हो सकती हैं? मायावती का इतिहास विश्वासघात का रहा है। अब उनकी परिवादवादी राजनीति का चहेरा बेनकाब हो चुका है।भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हरिशचंद्र श्रीवास्तव ने बयान जारी कर कहा है कि सत्ता के लिए अखिलेश ने अपने पिता मुलायम सिंह और चाचा शिवपाल को धोखा दिया था और इसकी सजा उन्हें मायावती से विश्वासघात के रूप में मिली है। मायावती और अखिलेश की कार्यशैली एक जैसी है। दोनों को परिवारवाद, वंशवाद और भ्रष्टाचार की सत्ता चाहिए। इसलिए इन दोनों का एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप हास्यास्प्रद है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार व भाई-भतीजावाद को समाजवाद कहने वाले अखिलेश यादव को अवसरवादी राजनीति के लिए मायावती से हाथ मिलाने से पहले सौ बार सोचना चाहिए था। जिस भाजपा ने मायावती की जान व सम्मान बचाया, जिसे राजनीति में स्थापित करते हुए मुख्यमंत्री बनाया, जब वो उसकी नहीं हुईं तो कुनबे की राजनीति करने वाली समाजवादी पार्टी की भी नहीं होंगी। मायावती डरी हुई हैं कि दलित समुदाय मायावती के छल-कपट को समझ चुका है और उसका बसपा से मोहभंग हो चुका है। इसलिये मायावती अब दलितों को छोड़ कर मुस्लिम तुष्टीकरण का खेल खुलकर खेलने लगी हैं।