लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद समाजवादी पार्टी में फिलहाल एकता की तस्वीर धुंधली-सी दिखाई दे रही है । नतीजों के बाद ऐसा लग रहा था कि चाचा-भतीजा परिवार और पार्टी बचाने के लिए फिर एक होंगे, लेकिन अब यह बात बेदम लगने लगी है । लगातार दो लोकसभा चुनाव और एक विधानसभा चुनाव हारने के बाद अखिलेश पर परिवार को एक करने का दबाव बढ़ा है । खासकर एसपी संस्थापक मुलायम सिंह यादव चाहते हैं कि पार्टी को खड़ा करने में योगदान देने वाले छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव को दोबारा साथ लाया जाए लेकिन अखिलेश इसके लिए राजी नहीं हैं । उन्हें लगता है कि शिवपाल के आने से पार्टी में उनके एकाधिकार और वर्चस्व को खतरा पैदा हो जाएगा । अखिलेश के करीबियों का मानना है कि एसपी अध्यक्ष नहीं चाहते कि पार्टी में एक बार फिर सत्ता के कई केंद्र बनें । शिवपाल के आने से इसकी संभावना कई गुना बढ़ जाएगी । कुछ व्यक्तिगत बातें भी ऐसी रही हैं कि शिवपाल को लेकर अखिलेश कड़वाहट दूर नहीं कर पा रहे हैं । लोकसभा चुनाव में एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन के पराजित होने के बाद से समाजवादी नेताओं को एक मंच पर लाने के प्रयास किए जा रहे हैं । सूत्रों का कहना है कि प्रमुख नेताओं से अलग-अलग वार्ता में मुलायम सिंह यादव पुराने कार्यकर्ताओं को एक मंच पर लाकर बीजेपी का विकल्प तैयार करने की इच्छा जता चुके हैं । राजनीतिक विश्लेषक रतनमणि लाल का कहना है, शिवपाल की ओर से कोई हिचक नहीं है । उन्हें लगता है कि उनकी वरिष्ठता के चलते अब वह पार्टी में जाएंगे तो उन्हें कोई बड़ा पद मिलेगा ।
शिवपाल अलग पार्टी बनाकर अपनी हिम्मत दिखा चुके हैं । इसलिए उनकी क्षमता पर भी कोई शक नहीं किया जा सकता है । अखिलेश और मुलायम दोनों जानते हैं कि एसपी को यहां पहुंचाने में उनका बड़ा हाथ है । उन्होंने कहा, शिवपाल को मालूम है कि उनकी इस बार पार्टी में क्या भूमिका होगी । वह अपनी पार्टी का विलय अपनी शतोर्ं पर ही करेंगे । अभी फिलहाल उन्हें मनाने का प्रयास किया जा रहा है । वह जानते हैं कि उनका वह अपरहैंड हैं । वह श्रेय लेना चाहते हैं कि जिस पार्टी को मुलायम ने बनाया और अखिलेश ने डुबोया, उसे शिवपाल उबार सकते हैं । इसलिए इसमें शिवपाल को दिक्कत नहीं है । अखिलेश को दिक्कत होगी ।