बाबरी मस्जिद गिराए जाने के मामले में लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी समेत अन्य बीजेपी नेताओ के खिलाफ साजिश के आरोपो के तहत मुकदमा चलेगा । लखनउ स्थित स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने इनके खिलाफ बाबरी गिराने की साजिश और अन्य धाराओ के तहत आरोप तय करने को कहा है । अब इस तरह मामले में ट्रायल चलेगा और इन्हें ट्रायल फेस करना होगा । पहले से इनके खिलाफ भडकाउ भाषण का मामला पेंडिग था, लेकिन इन सबके बीच एक सवाल अहम है कि क्या इस फैसले से इनके राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवारी पर विराम लग गया है या नही । कानुनी जानकारो की माने तो राष्ट्रपति पद की उम्मदवारी में इस फैसले से कोई कानुनी अडचन नहीं है, लेकिन मामला अब सिर्फ नैतिकता का है । नैतिकता का पैमाना हर नेता के लिए अलग अलग है, लेकिन कानुन और सविधान में कही भी आरोप लगने मात्र से उम्मीदवारी पर कोई फर्क नही पडेगा । बीजेपी के सीनियर नेताओ लाल कृष्ण अडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के नामो की चर्चा राष्ट्रपति पद के लिए होती रही है और इस बारे में अटकलो का बाजार गर्म रहा है । हालांकि, इस फैसले का इस मसले पर क्या असर होगा यह सवाल अहम है । संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते है कि इन नेताओ के खिलाफ पहले से भडकाउ भाषण का मामला पेडिंग था और अब सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी गिराए जाने की साजिश के आरोप में भी केस चलाने को कहा है तो ऐसे में यह मामला सिर्फ नैतिकता का है । जहां तक संविधान और कानुन का सवाल है तो कानुन में कही भी ऐसा नही है कि जिनके खिलाफ कोई क्रिमिनल केस चल रहा हो, वह चुनाव नही लड सकता । वैसे भी संविधान के बेसिक रुल्स ये है कि हर व्यक्ति कानुन के सामने तब तक निर्दोष है, जब तक कि वह दोषी करार नही दिया जाता । ऐसे में इन नेताओ के खिलाफ जो भी आरोप है, वे अभी ट्रायल का विषय है और ट्रायल के बाद यह तय होगा कि ये दोषी है या नही । ऐसे में कानुनी तौर पर चुनाव लडने को लेकर कोई रोक नही है । सुप्रीम कोर्ट के वकील और पूर्व अडिशनल सलिसिटर जनरल सिद्धार्थ लुथरा बताते है कि मामले को अब सिर्फ नैतिकता के पैमाने पर देखना होगा । किसी के खिलाफ फौजदारी केस अगर पेंडिंग है तो चुनाव लडने पर रोक नही है । इतना ही नही, अगर कोई राष्ट्रपति या राज्यपाल चुन लिया जाता है तो उसे संविधान के अनुच्छेद-३६१ के तहत छुट मिली है यानी उसके खिलाफ कार्रवाई भी नही हो सकती ।
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