लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला अपने पार्टनर के खिलाफ घरेलु हिंसा कानून के तहत गुजारे भत्ते के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकती है । सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन के एक मामले में अपना फैसला देते हुए कहा है कि घरेलु हिंसा में न सिर्फ शारीरिक, मानसिक बल्कि आर्थिक तौर पर प्रताड़ित करने के मामले में लिव-इन में रह चुकी महिला अपने पार्टनर के खिलाफ कानूनी उपचार का सहारा ले सकती है । इस कानून के तहत वह गुजारा भत्ते की हकदार है ।
असल में लिव-इन का यह मामला एक महिला से जुड़ा है, जिसने लिव-इन रिलेशनशिप से एक बेटे को जन्म दिया था । महिला और उनके बेटे को फैमिली कोर्ट ने २०१० में गुजारा भत्ता दिए जाने का आदेश दिया था । इसके खिलाफ महिला के पार्टनर ने झारखंड हाईकोर्ट का रुख किया था । हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जो शादीशुदा महिला हैं, उन्हें ही सीआरपीसी की धारा-१२५ के तहत गुजारा भत्ता दिया जा सकता है । इस पर महिला ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया । कोर्ट ने कहा कि अगर यह मान भी लिया जाए कि महिला शादीशुदा नहीं है, तो भी घरेलु हिंसा कानून के तहत महिला भत्ते की हकदार हो सकती है । चूंकि शादीशुदा नहीं है । ऐसे में सीआरपीसी की धारा-१२५ के तहत गुजारा भत्ते की हकदार हो सकती है । घरेलु हिंसा में आर्थिक प्रताड़ना भी शामिल है । अगर किसी को आर्थिक स्त्रोत से वंचित किया जाता है, तो वह इस दायरे में है ।
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