ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के मसले पर नया हलफनामा दाखिल किया है । बोर्ड ने कोर्ट से कहा है कि काजियों को इस संबंध में एडवायजरी जारी की जाएगी कि वह निकाह के वक्त दुल्हों को तीन तलाक का रास्ता नहीं अपनाने की सलाह दें । इसके साथ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने न्यायालय में दाखिल अपने हलफनामे में कहा है कि तीन तलाक शरीयत के तहत अवांछनीय परंपरा हैं । निकाहनामें में इसकी अनुमति देने का कोई प्रावधान नहीं होना चाहिए । हलफनामे में इस बात का भी जिक्र है निकाहनामे में लडकी के कहने पर ये शर्त शामिल करवाने का ऑप्शन हो कि उसको तीन तलाक नहीं दिया जा सकता । लोगों को जागरूक करने के लिए बोर्ड सोशल मीडिया, इलेक्ट्रोनिक मीडिया और प्रिन्ट मीडिया के माध्यम से तीन तलाक के बारे में बताया जाएगा । हलफनामे के सचिव मोहम्मद फजर्लुरहीम के अनुसार, निकाह कराते समय, निकाह कराने वाला व्यक्ति दुल्हे को सलाह देगा कि मतभेद के कारण तलाक की स्थिति उत्पन्न होने पर वह एक ही बार में तीन तलाक नहीं देगा, क्योंकि शरीयत में यह अवांछनीय परंपरा है । हलफनामे में कहा गया है कि निकाह कराते वक्त, निकाह कराने वाला व्यक्ति दुल्हा और दुल्हन दोनों को निकाहनामे में यह शर्त शामिल करने की सलाह देगा कि उसके पति द्वारा एक ही बार में तीन तलाक की परंपरा को अलग रखा जाएगा । मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के हलफ नामे का अवलोकन करेगी । इस संविधान पीठ ने १८ मई को ही तीन तलाक के मुद्दे पर सुनवाई पूरी की है । मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक की परंपरा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर संविधान पीठ ने केन्द्र सरकार, ऑल इन्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और ऑल इंडिया मुस्लिम वुमेन पर्सनल लॉ बोर्ड और अन्य पक्षों की दलीलों को गर्मी की छुट्टियों के दौरान छह दिन सुना था ।