सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक पर सुनवाई के दौरान मंगलवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि मुस्लिम समुदाय में शादी एक समझौता हैं । बोर्ड ने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं के हितों और उनकी गरिमा की रक्षा के लिए निकाहनामे में कुछ खास इंतजाम करने का विकल्प खुला हुआ हैं । बोर्ड ने कहा कि महिला निकाहनामे में अपनी तरफ से कुछ शर्ते भी रख सकती है । सीजेआई जेएस खेहर की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ के सामने पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि वैवाहिक रिश्ते में प्रवेश से पहले महिलाओं के सामने चार विकल्प होते हैं जिनमें स्पेशल मैरेज एक्ट १९५४ के तहत पंजीकरण का विकल्प भी शामिल हैं । एआईएमपीएलबी ने कहा कि महिला भी अपने हितों के लिए निकाहनामा में इस्लामी कानून के दायरे में कुछ शर्ते रख सकती हैं । महिला को भी सभी रुपों में तीन तलाक कहने का हक है और अपनी गरिमा की रक्षा के लिए तलाक की सूरत में मेहर की बहुत ऊंची राशि मांगने जैसी शर्तो को शामिल करने जैसे दूसरे विकल्प भी उसके पास उपलब्ध हैं । दिलचस्प बात यह है कि पिछले साल सितंबर में एआईएमपीएलबी ने सुप्रीम कोर्ट में शायरा बानों और अऩ्य की तीन तलाक को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में हलफनामा दाखिल कर कहा था, शरिया पति को तलाक का अधिकार देती है क्योंकि पुरुषों में महिलाों के मुकाबले फैसले लेने की क्षमता ज्यादा होती है । तीन तलाक के मसले पर अदालती सुनवाई के विरोध में वकील कपिल सिब्बल ने संविधान के आर्टिकल ३७१ए का हवाला देते हुए दलील दी कि संविधान भी समुदायों के रीति-रिवाजों और प्रथाओं के संरक्षण देता हैं ।
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