बैंकों का लोन जान-बूझकर नहीं चुकानेवाले कंपनियों के प्रमोटरों ने अपनी-अपनी कंपनी खोने के डर से ८३००० करोड़ रुपये का बकाया चुका दिया, इससे पहले कि संशोधित दिवालिया कानून इन्सॉल्वंसी ऐंड बैंकरप्ट्सी कोड (आईबीसी) के तहत कार्रवाई शुरू हो जाए । कंपनी मामलों के मंत्रालय की ओर से जुटाए आंकड़े बताते हैं कि २१०० से ज्यादा कंपनियों ने बैंकों का लोन वापस कर दिया है । इनमें ज्यादातर ने आईबीसी में संशोधन के बाद बैंकों का बकाया चुकाया ।
सरकार ने आईबीसी में संशोधन करके उन कंपनियों के प्रमोटरों को नैशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (एनसीएलटी) की ओर से कार्रवाई शुरू हो जाने के बाद नीलाम हो रही किसी कंपनी के लिए बोली लगाने पर रोक लगा दी गई जिसे दिया गया लोन बैंकों को नॉन-परफॉर्मिंग ऐसेट्स (एनपीए) घोषित करनी पड़ी । ध्यान रहे कि जब लोन की ईएमआई ९० दिनों तक रुक जाए तो उसे एनपीए घोषित कर दिया जाता है । आईबीसी में संशोधन का उद्योग जगत ने कड़ा विरोध किया क्योंकि एस्सर ग्रुप के रुइया, भूषण ग्रुप के सिंघल और जयप्रकाश ग्रुप के गौड़ जैसे नामी-गिरामी औद्योगिक घरानों को रेजॉलुशन प्रोसेस में भाग लेने से रोक दिया गया । एक आशंका यह भी थी कि बड़े पैमाने पर कंपनियों को अयोग्य घोषित कर दिए जाने के कारण नीलाम हो रही कंपनियों के लिए बड़ी बोलियां नहीं लग पाएंगी, जिससे बैंकों को अपने लोन का छोटा हिस्सा ही वापस मिल सकेगा । इसके जवाब में सरकार ने कहा कि प्रमोटरों को बैंकों का चूना लगाकर अपनी ही कंपनी औने-पौने दाम में वापस पाने की अनुमति नहीं दी जाएगी । हालांकि, सरकार ने बैंकों का बकाया चुकानेवाले प्रमोटरों को बोली लगाने की अनुमति जरूर दे दी । एक सूत्र ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर कहा, लोन डिफॉल्टर्स पर वास्तविक दबाव बकाया वापस करने का है । आईबीसी की वजह से कर्ज लेने और देने की संस्कृति बदल रही है ।