राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) में इन दिनों भीतर ही भीतर भयानक द्वंद्व चल रहा है । संघ की नागपुर लॉबी को लग रहा है कि नरेन्द्र मोदी जिस रफ्तार से बडे हो रहे हैं, कहीं ऐसा न हो कि उन्हें नियंत्रित करना मुश्किल हो जाए । यही वजह है कि मोदी की लाख कोशिशों के बावजूद संघ के सरकार्यवाह के पद पर दत्तात्रय होसबले की नियुक्ति नहीं हो पाई । होसबले की जगह सुरेश जोशी (जिन्हें संगठन में भैय्याजी के नाम से जाता है) यथावत रहे । बता दें कि आरएसएस में संघ प्रमुख यानी संघचालक के बाद सरकार्यवाह ही सबसे बड़ा और अधिकार वाला पद है । नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद से लगातार यह कोशिश कर रहे हैं कि सरकार्यवाह के पद पर उनकी मर्जी के दत्तात्रय होसबले विराजमान हो जाएं, लेकिन संघ की नागपुर लॉबी दो बार मोदी की इन कोशिशों को गच्चा दे चुकी है । पहली बार २०१५ में और दूसरी बार २०१८ में भी ।
इसके पीछे की वजह यह है कि दत्तात्रय होसबले संघ की शाखा से निकलकर नहीं, बल्कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से संघ में आए हैं । संघ के लोगों के बीच यह धारणा भी बहुत गहरे तक है कि संघ की शाखाओं में बचपन से शामिल होने वाले स्वयंसेवकों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए, क्योंकि दूसरे संगठनों से लोग युवावस्था में पद और अधिकार की लालसा के साथ संघ में आते हैं और बड़े-बड़े पर्दो पर पहुंच जाता है । मोदी की पसंद होसबले को रोकने के साथ ही सरकार्यवाह के नीचे जो छह सह सरकार्यवाह बनाए गए हैं, उनमें भी अपना बहुमत बनाने में नागपुर लॉबी कामयाब रही है । छह सह सरकार्यवाह में से चार नागपुर लॉबी के अपने करीबी लोग है । सबसे बड़ा घटनाक्रम तो यह है कि मोदी की वजह से गुजरात प्रांत प्रचारक पद से हटाए गए डॉ.मनमोहन वैद्य को सहसरकार्यवाह बनाया गया है । मनमोहन वैद्य संघ के बड़े नेता मा.गो.वैद्य के बेटे हैं ।
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