तीन तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में आज भी सुनवाई जारी है । सर्वोच्च न्यायालय के पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले में १९ मई तक रोज सुनवाई करने जा रही है । बेंच में चीफ जस्टिस जेएस खेहर के अलावा जस्टिस जोसेफ कुरियन, आरएफ नरीमन यूयू ललित और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल हैं । पहले दिन सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा था कि अगर तीन तलाक गैर-कानूनी घोषित होता है तो उसका अगला कदम क्या होगा । मसले पर केन्द्र का कहना है कि वो महिलाओं के बुनियादी हकों के पक्ष में है और किसी एक वर्ग की महिलाओं को इन हकों से महरूम नहीं रखा जा सकता है । तीन तलाक की शिकार महिलाओं की पैरवी करते हुए सीनियर वकील इंदिरा जयसिंह का कहना था कि केन्द्र सरकार के लिए महज महिलाओं के हक में बयान देना ही काफी नहीं हैं और मामले में संसद को दखल देना चाहिए । मामले में एमिकस क्यूरी यानी न्यायमित्र सलमान खुर्शीद ने कहा कि सुलह की कोशिश के बैगर तीन तलाक को इस्लामी कानून मान्यता नहीं देता हैं । उनकी दलील थी कि इस्लामी कानून में पति और पत्नी दोनों की जिम्मेदारियां तय हैं । उनकी राय में तीन तलाक कोई मुद्दा नहीं हैं क्योंकि इसका ताल्लुक पति और पत्नी के निजी संबंधो से हैं । मामले में पर्सनल लॉ बोर्ड की पैरवी कर रहे कपिल सिब्बल ने भी खुर्शीद की दलीलों का समर्थन किया । खुर्शीद ने कोर्ट को बताया कि ऑल इन्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बॉर्ड की नजर में तलाक एक घिनौना लेकिन वैध रिवाज हैं । खुर्शीद का कहना था कि उनकी निजी राय में तीन तलाक पाप है और इस्लाम किसी भी गुनाह की इजाजत नहीं दे सकता । बेंच के सवालों के जवाब में खुर्शीद ने कहा कि तीन तलाक जैसा गुनाह शरीयत का हिस्सा नहीं हो सकता । उन्होंने बताया कि सिर्फ भारतीय मुस्लिमों में ही तीन तलाक का प्रचलन हैं ।