देश के कुल ४० हजार से ज्यादा कॉलेजों में से महज २.६ पर्सेंट कॉलेज ही पीएचडी प्रोग्राम ऑफर करते हैं । एचआरडी मिनिस्ट्री के सर्वे के मुताबिक ३६.७ पर्सेंट कॉलेज ऐसे हैं जो पीजी लेवल कोर्स कराते हैं । सर्वे में बताया गया है कि पीएचडी में एनरोल करने वाले ज्यादातर स्टूडेंट्स साइंस के विषयों में पीएचडी कर रहे हैं, जबकि पीजी स्तर पर सबसे ज्यादा स्टूडेंट्स सोशल साइंस के विषय पढ़ते हैं । सोशल साइंस में रिसर्च कम हो रहा है इसे लेकर एचआरडी मिनिस्ट्री भी चिंता जाहिर कर चुकी है । सूत्रों के मुताबिक इस स्थिति को ठीक करने के लिए अब नई- नैशनल एजूकेशन पॉलिसी में कुछ प्रावधान जोड़ने की योजना है । संघ से जुड़े संगठन भारतीय शिक्षण मंडल के आखिर भारतीय संगठन मंत्री मुकुल कानिटकर ने कहा कि सोशल साइंस में रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए सिर्फ हायर एजुकेशन पर ही ध्यान देने से कुछ नहीं होगा । उन्होंने कहा कि इसके लिए स्कूल एजुकेशन से ही कदम उठाने होंगे । क्योंकि सारे अच्छे स्टूडेंट दसवीं के बाद साइंस ही लेते हैं, यहीं से गड़बड़ शुरू होती हैं । जिसे ठीक करने की जरूरत है । कानिटकर ने बताया कि हमने एचआरडी मिनिस्ट्री को नई एजुकेशन पॉलिसी के लिए सुझाव दिए हैं । इसमें ये भी कहा गया है कि ९वीं क्लास से ही स्टूडेंट को विषय चुनने की फ्लेक्सबिलटी दी जाए । जिस तरह हायर लेवल पर चॉइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम है उसी तरह यह ९वीं क्लास से लागू किया जाए । अगर कोई स्टूडेंट गणित के साथ भूगोल पढ़ना चाहता हैं तो उसे इसकी चॉइस होनी चाहिए । उन्होंने कहा कि अगर साइंस के विषय के साथ दूसरे विषय पढ़ाने की फ्लेक्सबिलटी मिल जाएगी तब यह दिक्कत दूर होगी । तब सोशल साइंस में भी नई और अच्छी रिसर्च होंगी । सूत्रों के मुताबिक इस सुझाव के नई एजुकेशन पॉलिसी में शामिल होने की उम्मीद है । इसके बाद ९वीं क्लास के स्टूडेंट को विषय चुनने की आजादी मिलेगी । दिल्ली यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रवक्ता सौरभ बाजपेयी कहते है कि सोशल साइंस को लेकर फंडिंग लगातार कम हो रही है जिससे स्टूडेंट की रुचि भी इसमें कम हो रही है ।
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