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अब दलित की नाराजगी से फडणवीस की चिंता बढी

दलितों संगठनों के खिलाफ गत सोमवार को हुई हिंसा के विरोध में इन संगठनों का प्रदर्शन महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार के लिए नया सिरदर्द बन जाएगा । सरकार पहले से मराठा समुदाय के विरोध से जूझ रही है । वर्षों तक राज्य में दलित नेतृत्व बंटा हुआ था और कई नेता अलग-अलग गुटों की अगुवाई कर रहे थे । हालांकि, जब भरीपा बहुजन महासंघ के नेता प्रकाश अंबेडकर ने गत बुधवार को बंद का आह्वान किया, तो सभी दलित संगठनों ने एकजुट होकर इस अभूतपूर्व बंद में हिस्सा लिया । दलित पार्टियों की एकजुटता फडणवीस सरकार के लिए चिंता की बात है । बीजेपी के सहयोगी और आरपीआई के नेता और केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने गत बुधवार को बीजेपी और सरकारी अधिकारियों के उस दावे को खारिज कर दिया कि पुणे में गत सोमवार को गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवानी के इशारे पर हिंसा हुई । आठवले ने बताया कि पुलिस को जिग्नेश मेवानी के मामले की जांच करनी चाहिए, लेकिन उनका मानना था कि पुणे में हिंसा की कई अन्य वजहें हैं । आठवले के करीबी सूत्रों ने दावा किया कि आरपीआई नेता बीजेपी की उस व्याख्या से असहज हैं कि हिंसा मेवानी और जेएनयू स्टूडेंट उमर खालिद के बयानों के कारण हुई । एक सूत्र ने कहा, यह साफ है कि संभाजी भिड़े और एकबोटे की अगुवाई संगठन जिम्मेदार हैं । राज्य सरकार को उन पर लगाम कसनी चाहिए । यह देखना दिलचस्प होगा कि फडणवीस सरकार इस चुनौती को लेती है या नहीं । भिड़े का आरएसएस के अलावा पश्चिम महाराष्ट्र में प्रभाव है, जबकि एकबोटे ने गौरक्षा जैसे मुद्दों का समर्थन कर अपनी पहचान हासिल की है । सरकार अजीबोगरीब स्थिति में फंसी नजर आ रही है, क्योंकि स्थिति के जातीय लड़ाई में बदलने का खतरा है । मिसाल के तौर पर दलितों और मराठों के बीच गत बुधवार को कोल्हापुर में झगड़ा हुआ । राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश जोशी ने बताया, बीजेपी के वोट में बढ़ोतरी नरेन्द्र मोदी के कारण हुई और जमीनी स्तर पर पार्टी अब भी कमजोर है ।

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