दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव पर भारत करीबी नजर रख रहा है । नरेन्द्र मोदी सरकार की ईस्ट पॉलिसी के तहत भारत ने इस देशों में पिछले ३ वर्षों में इंफ्रास्ट्रकचर और अन्य प्रोजेक्ट्स पर काम किया है, लेकिन एक्सपट्र्स का मानना है कि वन बेल्ट, वन रोड या ओबीओआर प्रोजेक्ट के तहत चीन के भारी इनवेस्टमेंट से इस रीजन में राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता पैदा हो सकती है, जिसका असर भारत पर भी पड़ेगा । कंबोडिया और लाओस जैसे देशों में चीन के इनवेस्टमेंट का मकसद रीजनल कनेक्टिविटी के साथ ही अपना प्रभाव बढ़ाना है । चीन की ओर से १४-१५ मई को ओबीओआर पर आयोजित की जा रही मीटिंग में कंबोडिया, लाओस, इंडोनेशिया और म्यांमार हिस्सा लेने जा रहे हैं । हालांकि, चीन के साथ अपने कमजोर राजनीतिक संबंधो के मद्देनजर वियतनाम के इस मीटिंग में शामिल होने की संभावना कम है । चीन अपने देश के दक्षिणी हिस्से से दक्षिण पूर्व एशियाई देशो तक नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट लिंक का कंस्ट्रकशन कर रहा है । एशियन डिवेलपमेंट बैंक के मुताबिक, दक्षिणपूर्व एशिआई देशों को अपनी इकनॉमिक ग्रोथ और बढ़ती जनसंख्या की जरूरतों के कारण एनर्जी और ट्रांसपोर्टेशन जैसे सेक्टर्स में बड़े इनवेस्टमेंट चाहिए । हालांकि, बहुत से दक्षिणपर्ण एशियाई देशों पर साथ आर्थिक संबंध मजबूत होने के बावजूद इन देशों के साथ सुरक्षा को लेकर चीन का सहयोग नहीं बढ़ा है । चीन के एक्सपर्टस का मानना है कि ये देश इनवेस्टमेंट तो लेंगे, लेकिन चीन की राजनीतिक और सुरक्षा की जरूरतों को पूरा नहीं करेंगे । ऐसे देशों में सिंगापुर, वियतनाम और म्यांमार शामिल है । साउथ चाइना सी रीजन में चीन के दावों को लेकर सिंगापुर ने नियमों पर आधारित एक वैश्विक आदेश की मांग की है । म्यांमार में ची की फंडिंग वाले डेम और पोर्ट प्रोजेक्ट्स को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति है । वियतनाम के दशकों से चीन के साथ राजनीति संबंध अच्छे नहीं है और साउथ चाइना सी में चीन के आक्रामक कदमों से दोनों देशों के बीच मतभेद और बढ़े हैं । इंडोनेशिया और मलेशिया को भी इससे दक्कत हो रही है । हालांकि, इन दोनों देशों में चीन बहुत से इंफ्रास्ट्रकचर प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है ।