सोशल मीडिया पर दावे किए जा रहे हैं कि जल्द ही दवाइयों का संकट पैदा हो सकता है क्योंकि भंडारणकर्ता (स्टॉकिस्ट) वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के लागू होने के तौर-तरीकों की अनिश्चितता से आशंकित हैं । यही वजह है कि वो दवाईयों का भंडारण घटा रहे हैं । यहां तक कि कई स्टॉकिस्ट भारी मात्रा में पड़ी दवाइयां मैन्युफैक्चरर्स को वापस कर ररे हैं । उन्हें इस बात की चिंता है कि जीएसटी लागू होने के बाद कर अदायगी (टैक्स पेआउट्स) और कर वापसी (टैक्स रिफंड्स) के बीच तालमेल की संभावित कमी की वजह से नुकसान उठाना पड़ सकता है । इधर, इंडस्ट्री एक्सपर्टस का मानना है कि स्टॉक कम होने के कारण कुछ दिनों के लिए कुछ दवाइयों की मांग और आपूर्ति में असंतुलन उत्पन्न हो सकता है । हालांकि, यह समस्या लंबे वक्त के लिए नहीं रहेगी, इसलिए घबराने की जरूरत नहीं है ।
सोशल मीडिया प्लैंटफाॆर्मो पर दवाइयों की कमी की आशंका पर कोहराम मच रहा है और मरीजों से कहा जा रहा है कि वो १ जुलाई से होनेवाले गंभीर संकट के मद्देनजर दवाइयां अभी ही जमा कर लें । ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन फार्मासूटिकल्स के वाइस प्रेजिडेंट (द.एशिया) और एमडी ए.वैधीश ने कहा, (जीएसटी लागू होने के बाद के) फालतू के असर से बचने के लिए स्टॉक कम करना एक सामान्य प्रक्रिया है । इतनी दवाइयां स्टॉक्स में रह सकती हैं जिससे बाजार की मांग पूरी हो सके । जीएसटी के तहत दवाइयों पर टैक्स रेट तय होना बाकी है । ऐसे में डीलर और स्टॉकिस्ट वेट ऐंड वॉच की नीति अपना रहे हैं । ऑल इंडिया ऑरिजिन केमिस्ट्स ऐंड डिस्ट्रीब्युटर्ल लि. एडबल्यूएपीएस के एक डायरेक्टर अमीश मसूरेकर ने बताया, दवां वितरकों के पास अक्सर ४० दिनों की भंडार रहता है जबकि खुदरा दुकानदार अपने पास १० दिनों की दवाइयां रखते हैं । अगर जीएसटी रेट सही नहीं रहा तो जून के आखिरी हफ्ते में डिस्ट्रीब्यूटर अपने स्टॉक ४० दिन से घटाकर १५ दिनों का कर सकते है । इसका खुदरा दुकानदारी पर कोई असर नहीं पड़ने वाला । उन्होंने कहा कि दवाइयों की कोई कमी नहीं होगी और भंडारण के अभाव को जुलाई के पहले हफ्ते में फिर पूरा कर लिया जाएगा ।
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