राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद में एक नया मोड आया है । शिया वक्फ बोर्ड ने इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया है । शिया वक्फ बोर्ड ने हलफनामे में कहा है कि विवादित जमीन पर राम मंदिर बनना चाहिए और उससे थोडी दुर मुस्लिम इलाके में मस्जिद बनाई जानी चाहिए । शिया वक्फ बोर्ड ने दावा किया है कि बाबरी मस्जिद शिया वक्फ थी इसलिए इस मामले में दुसरे पक्षकारो के साथ बातचीत और एक शांतिपूर्ण समाधान तक पहुंचने का अधिकार केवल उसी के पास है । शिया वक्फ बोर्ड ने कहा है कि अगर मंदिर मस्जिद का निर्माण हो गया तो इस लंबे विवाद और रोज रोज की अशांति से मुक्ति मिल जाएगी । उधर, अयोध्या विवाद मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय बेंच का गठन किया गया है । यह बेंच ११ अगस्त ने इन याचिकाओं की सुनवाई करेगी । इस तीन सदस्यीय खंडपीठ के अन्य सदस्यो में जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल है । यह खंडपीठ अयोध्या में राम मंदिर बाबरी मस्जिद भूमि के मालिकाना हक को लेकर चल रहे विवाद का निर्णय करेगी । इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनउ बेंच ने २०१० में अपनी व्यवस्था में इस भूमि को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाडा और राम लला के बीच तीन हिस्सो में बराबर बांटने का निर्देश दिया था । पिछले दिनों एक घटनाक्रम में उत्तर प्रदेश शिपा सेंट्रेल वक्फ बोर्ड ने रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद से जुडे मामलो में पक्ष बनने का फैसला किया है । बोर्ड अध्यक्ष वसीम रिजवी कहा था कि बोर्ड सदस्यो की राय है कि वक्फ मस्जिद मीर बकी शिया थे । रिजवी ने दावा किया कि इस तथ्य के अनुसार वह शिया मस्जिद थी । केवल मस्जिद के इनाम ही सुन्नी थे, जिन्हें शिया मुतवल्ली पारिश्रमिक देते थे और वहां शिया सुन्नी दोनो ही नमाज पढते थे । बोर्ड सदस्यो के नजरिये से मीडिया को अवगत कराते हुए रिजवी ने कहा था कि १९४४ में सुन्नी बोर्ड ने मस्जिद अपने नाम से पंजीकृत करा ली थी, जिसे शिया बोर्ड में १९४५ में अदालत में चुनौती दी थी लेकिन शिया बोर्ड मुकदमा हार गया ।